एक बार लंदन में मूसलाधार बारिश हो रही थी। ठंड इतनी ज्यादा थी कि लोग-बाग ठिठुर रहे थे। रात में एक होटेल में कांपते हुए पति-पत्नी पहुंचे और उन्होंने एक कमरा मांगा। मैनेजर ने कहा, 'माफ कीजिए, इस समय तो कोई कमरा खाली नहीं है।' इस पर औरत बोली, 'हम कई होटेलों के चक्कर काट चुके हैं। सबने यही जवाब दिया कि कमरा खाली नहीं है। इस वक्त हम कहां जाए?'
लेकिन मैनेजर ने उनकी सहायता करने से इनकार कर दिया। यह बातचीत एक वेटर सुन रहा था। उसने कहा, 'बुरा न मानें तो मैं एक बात कहूं। मेरा एक छोटा सा कमरा है। आज रात आप लोग मेरे कमरे में ठहर सकते हैं।' महिला ने पूछा, 'फिर तुम कहां रहोगे?' उसने कहा, 'इस होटेल में ही रात गुजार लूंगा।'
वेटर ने उस दंपती को अपने कमरे में ठहरा दिया। इस घटना के कई साल बाद उस वेटर को एक पत्र और न्यू यॉर्क आने का टिकट मिला। यह सब वहां के किसी होटेल के मालिक ने भेजा था। पत्र में लिखा था कि आप तुरंत आकर मिलें। वेटर न्यू यॉर्क में उस पते पर पहुंचा, तो हैरत में पड़ गया। सामने बैठे आदमी को देख कर उसे याद आया कि यह तो वही सज्जन हैं, जिन्हें उसने एक बार अपने कमरे में ठहराया था।
उस सज्जन ने वेटर से कहा, 'मुझे विलियम कहते हैं। यह मेरा ही होटेल है।' फिर विलियम ने होटेल की चाबी उसे देते हुए कहा, 'आज से तुम मेरे होटेल के मैनेजर हो।' वेटर घबराकर बोला, 'यह मुझसे नहीं होगा। मैंने हमेशा वेटर का काम किया है। इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभालने की मुझमें योग्यता नहीं है।'
विलियम ने कहा, 'मैंने उसी दिन तुम्हें परख लिया था, जब तुमने सर्दी की रात में हमें शरण दी थी। मुसीबत में किसी के साथ सहानुभूति रखना और उसकी मदद करना एक मैनेजर की सबसे बड़ी योग्यता होती है। यह योग्यता तुम्हारे पास है।'
Wednesday, May 19, 2010
आंखों का तारा
पनघट पर चार औरतें पानी भरने आईं। बातों ही बातों में उन्होंने अपने बेटों की प्रशंसा शुरू कर दी। एक ने कहा, 'मेरा
बेटा बहुत सुरीली बांसुरी बजाता है।' दूसरी ने कहा, 'मेरा बेटा बहुत बड़ा पहलवान है।' तीसरी बोली, 'मेरा पुत्र पढ़ने-लिखने में बहुत तेज है।' चौथी औरत ने कुछ नहीं कहा।
तीनों ने उससे कहा, 'तुम भी कुछ कहो न।' उसने उत्तर दिया, 'मेरे बेटे में कोई विशेष गुण नहीं है।' तभी पहली औरत का बेटा आया। उसकी मां पानी से भरा घड़ा नहीं उठा पा रही थी। बेटे ने एक निगाह अपनी मां पर डाली और बांसुरी बजाता हुआ आगे निकल गया। दूसरी औरत का पहलवान बेटा कुछ दूरी पर खड़ा मुद्गर घुमा रहा था। उसकी मां घड़ा लेकर कुएं से उतर ही रही थी कि उसका पैर फिसल गया। पहलवान ने एक बार अपनी मां की तरफ देखा और फिर अपने काम में लग गया।
तीसरी औरत का बेटा किताब पढ़ता हुआ जा रहा था। उसकी मां ने कहा, 'मैं दोनों हाथों से घड़ा पकडे़ हुए हूं। रस्सी मेरे कंधे पर डाल दे।' बेटे ने किताब से निगाह हटाए बिना चलते-चलते कहा, 'पढ़ने दो मुझे।' इसके बाद चौथी औरत का बेटा आया। उसने अपनी मां के सिर से घड़ा उतारकर अपने सिर पर रख लिया और घर की ओर चल पड़ा। एक बुढि़या सब देख-सुन रही थी। वह बोली, 'मुझे तो एक ही आंखों का तारा दिखाई पड़ रहा है- वही जो अपने सिर पर घड़ा लिए जा रहा है।'
बेटा बहुत सुरीली बांसुरी बजाता है।' दूसरी ने कहा, 'मेरा बेटा बहुत बड़ा पहलवान है।' तीसरी बोली, 'मेरा पुत्र पढ़ने-लिखने में बहुत तेज है।' चौथी औरत ने कुछ नहीं कहा।
तीनों ने उससे कहा, 'तुम भी कुछ कहो न।' उसने उत्तर दिया, 'मेरे बेटे में कोई विशेष गुण नहीं है।' तभी पहली औरत का बेटा आया। उसकी मां पानी से भरा घड़ा नहीं उठा पा रही थी। बेटे ने एक निगाह अपनी मां पर डाली और बांसुरी बजाता हुआ आगे निकल गया। दूसरी औरत का पहलवान बेटा कुछ दूरी पर खड़ा मुद्गर घुमा रहा था। उसकी मां घड़ा लेकर कुएं से उतर ही रही थी कि उसका पैर फिसल गया। पहलवान ने एक बार अपनी मां की तरफ देखा और फिर अपने काम में लग गया।
तीसरी औरत का बेटा किताब पढ़ता हुआ जा रहा था। उसकी मां ने कहा, 'मैं दोनों हाथों से घड़ा पकडे़ हुए हूं। रस्सी मेरे कंधे पर डाल दे।' बेटे ने किताब से निगाह हटाए बिना चलते-चलते कहा, 'पढ़ने दो मुझे।' इसके बाद चौथी औरत का बेटा आया। उसने अपनी मां के सिर से घड़ा उतारकर अपने सिर पर रख लिया और घर की ओर चल पड़ा। एक बुढि़या सब देख-सुन रही थी। वह बोली, 'मुझे तो एक ही आंखों का तारा दिखाई पड़ रहा है- वही जो अपने सिर पर घड़ा लिए जा रहा है।'
Saturday, May 15, 2010
समय का मूल्य
राजदरबार में एक आदमी आया। उसने राजा से प्रार्थना की, 'महाराज, मैं बहुत गरीब हूं, कृपया मुझे सोने के कुछ सिक्के दे दीजिए।' राजा ने पूछा,'तुम कोई काम क्यों नहीं करते?' वह बोला, 'मुझे कोई काम नहीं देता। लोग मुझे आलसी कहते हैं।'
राजा ने कहा, 'ठीक है, खजाने से तुम जितना सोना ले जाना चाहो, ले जाओ। परंतु ध्यान रखना, सूरज ढलने के बाद खजाना बंद हो जाता है, इसलिए समय पर आ जाना।' वह आदमी बहुत खुश हुआ। अगले दिन नाश्ता कर वह खजाने की ओर चल दिया। रास्ते में उसे एक छायादार पेड़ मिला। घनी छाया देखकर वह वहीं सो गया। दोपहर में जब नींद खुली तो उसने सोचा, शायद मैं ज्यादा देर सो गया। खैर कोई बात नहीं, शाम होने में अभी काफी समय बाकी है। वह उठकर आगे बढ़ा। रास्ते में मेला लगा हुआ था। उसने सोचा, क्यों न कुछ देर मेला देख लिया जाए, फिर खजांची के पास चला जाऊंगा।
काफी देर तक वह मेले का आनंद लेता रहा। जब उसने देखा कि अब सूरज डूबने ही वाला है तो उसे राजा की चेतावनी याद आई। वह भागकर खजाने के पास पहुंचा लेकिन तब तक सूरज डूब चुका था। सैनिकों ने उसे अंदर जाने से रोक दिया। उन्होंने कहा, 'तुमने देर करके अमीर बनने का एक बढ़िया मौका खो दिया।' वह अपने घर लौट गया। उसे बेहद पछतावा हो रहा था। उसने तय किया कि जीवन में वह कभी आलस्य नहीं करेगा।
संकलन : रमेश चंद्र
राजा ने कहा, 'ठीक है, खजाने से तुम जितना सोना ले जाना चाहो, ले जाओ। परंतु ध्यान रखना, सूरज ढलने के बाद खजाना बंद हो जाता है, इसलिए समय पर आ जाना।' वह आदमी बहुत खुश हुआ। अगले दिन नाश्ता कर वह खजाने की ओर चल दिया। रास्ते में उसे एक छायादार पेड़ मिला। घनी छाया देखकर वह वहीं सो गया। दोपहर में जब नींद खुली तो उसने सोचा, शायद मैं ज्यादा देर सो गया। खैर कोई बात नहीं, शाम होने में अभी काफी समय बाकी है। वह उठकर आगे बढ़ा। रास्ते में मेला लगा हुआ था। उसने सोचा, क्यों न कुछ देर मेला देख लिया जाए, फिर खजांची के पास चला जाऊंगा।
काफी देर तक वह मेले का आनंद लेता रहा। जब उसने देखा कि अब सूरज डूबने ही वाला है तो उसे राजा की चेतावनी याद आई। वह भागकर खजाने के पास पहुंचा लेकिन तब तक सूरज डूब चुका था। सैनिकों ने उसे अंदर जाने से रोक दिया। उन्होंने कहा, 'तुमने देर करके अमीर बनने का एक बढ़िया मौका खो दिया।' वह अपने घर लौट गया। उसे बेहद पछतावा हो रहा था। उसने तय किया कि जीवन में वह कभी आलस्य नहीं करेगा।
संकलन : रमेश चंद्र
कल कभी नहीं आता
राम-रावण युद्ध समाप्त हो चुका था। रावण मृत्यु शय्या पर पड़ा अंतिम सांसें गिन रहा था। तभी उसने देखा कि लक्ष्मण उसकी ओर चले आ रहे हैं। लक्ष्मण उसके निकट आए और बोले, 'मेरे भाई श्रीराम आपसे ज्ञान की बातें सीखना चाहते हैं।'
आश्चर्य में भरकर रावण बोला, 'तुम्हारे भाई सर्वज्ञ हैं। मैं उन्हें क्या सिखा पाऊंगा। और फिर मैं तो उठकर चल भी नहीं सकता। मैं उनके पास कैसे पहुंच पाऊंगा।' लक्ष्मण ने कहा, 'आप इसकी चिंता न करें। मैं श्रीराम को यहां लेकर आ जाऊंगा।' श्रीराम आए। उनसे रावण ने विनम्रतापूर्वक कहा, 'हे सूर्यवंश के गौरव! मेरा प्रणाम स्वीकार करें। मैं राक्षस हूं, मैं आपको क्या सिखा पाऊंगा।' राम ने कहा, 'यह सच है कि तुम राक्षस हो, परंतु यह भी सच है कि तुम एक शक्तिशाली और बुद्धिमान शासक रहे हो। तुम्हें अच्छे और बुरे का ज्ञान है। मैं यह ज्ञान तुमसे प्राप्त करना चाहता हूं।'
रावण ने उन्हें उपदेश देना शुरू किया, 'अच्छे कार्यों को कभी नहीं टालना चाहिए। हो सकता है कि टालने के कारण उन कार्यों को करने का कभी अवसर ही न आए। मैंने सोचा था कि नरक का मार्ग बंद करवा दूंगा, ताकि किसी को परलोक में दु:ख न भोगने पडे़। दूसरा काम समुद्र के खारे पानी को निकाल कर उसे दूध से भर देने का था। तीसरा काम धरती से स्वर्ग तक सीढ़ी बनाने का था, जिससे पापी-पुण्यात्मा सभी स्वर्ग तक पहुंच सकें।' इतना कहकर रावण रुका। मृत्यु निकट होने के कारण उसकी बोलने की शक्ति कम होती जा रही थी।
हांफते हुए वह बोला, 'इन तीनों कार्यों को मैं कल पर टालता रहा और कल तो कभी आता नहीं। मैं इन कर सकने वाले कार्यों को कभी कर नहीं पाया।' रावण फिर थोड़ा ठहरकर बोला, 'अच्छे कार्यों को टालना जितना बुरा है, बुरे कार्यों को टालना उतना ही अच्छा। मां सीता का हरण करने में मैंने तत्परता दिखाई, लेकिन वह मुझे टाल देना चाहिए था।'
संकलन : स्वामी रामराज्यम्
आश्चर्य में भरकर रावण बोला, 'तुम्हारे भाई सर्वज्ञ हैं। मैं उन्हें क्या सिखा पाऊंगा। और फिर मैं तो उठकर चल भी नहीं सकता। मैं उनके पास कैसे पहुंच पाऊंगा।' लक्ष्मण ने कहा, 'आप इसकी चिंता न करें। मैं श्रीराम को यहां लेकर आ जाऊंगा।' श्रीराम आए। उनसे रावण ने विनम्रतापूर्वक कहा, 'हे सूर्यवंश के गौरव! मेरा प्रणाम स्वीकार करें। मैं राक्षस हूं, मैं आपको क्या सिखा पाऊंगा।' राम ने कहा, 'यह सच है कि तुम राक्षस हो, परंतु यह भी सच है कि तुम एक शक्तिशाली और बुद्धिमान शासक रहे हो। तुम्हें अच्छे और बुरे का ज्ञान है। मैं यह ज्ञान तुमसे प्राप्त करना चाहता हूं।'
रावण ने उन्हें उपदेश देना शुरू किया, 'अच्छे कार्यों को कभी नहीं टालना चाहिए। हो सकता है कि टालने के कारण उन कार्यों को करने का कभी अवसर ही न आए। मैंने सोचा था कि नरक का मार्ग बंद करवा दूंगा, ताकि किसी को परलोक में दु:ख न भोगने पडे़। दूसरा काम समुद्र के खारे पानी को निकाल कर उसे दूध से भर देने का था। तीसरा काम धरती से स्वर्ग तक सीढ़ी बनाने का था, जिससे पापी-पुण्यात्मा सभी स्वर्ग तक पहुंच सकें।' इतना कहकर रावण रुका। मृत्यु निकट होने के कारण उसकी बोलने की शक्ति कम होती जा रही थी।
हांफते हुए वह बोला, 'इन तीनों कार्यों को मैं कल पर टालता रहा और कल तो कभी आता नहीं। मैं इन कर सकने वाले कार्यों को कभी कर नहीं पाया।' रावण फिर थोड़ा ठहरकर बोला, 'अच्छे कार्यों को टालना जितना बुरा है, बुरे कार्यों को टालना उतना ही अच्छा। मां सीता का हरण करने में मैंने तत्परता दिखाई, लेकिन वह मुझे टाल देना चाहिए था।'
संकलन : स्वामी रामराज्यम्
Monday, May 10, 2010
मन की प्रेरणा
नॉर्वे में फलेरा नामक एक रईस रहता था। उसका एक नौकर था- एंटोनियो। एंटोनियो को काम से जब भी फुर्सत मिलती, वह पास के एक मूर्तिकार की दुकान के बाहर खड़े होकर मूर्तियां बनते देखता था। वह पढ़ा-लिखा नहीं था, लेकिन मूर्तियां बनते देख कर उसे कुछ समझ आ गई थी। कई बार वह इस काम में कारीगरों की मदद भी कर देता।
एक बार दुकान मालिक ने उससे कहा, 'तुम यहां आकर अपना समय क्यों बर्बाद करते हो?' एंटोनियो ने कहा, 'मुझे मूर्तियां बनते देख कर अच्छा लगता है।' उसके बाद भी वहां उसका आना बदस्तूर जारी रहा। एक दिन उसके मालिक फलेरा ने कुछ लोगों को अपने यहां दावत पर बुलाया। खाने की तैयारी और दावत-स्थल की साज-सज्जा का काम मुख्य बैरे का था। सब काम ठीकठाक हो रहा था, मगर टेबल के बीच की सजावट ठीक से नहीं हो पा रही थी।
अतिथियों के आने का समय हो गया था। मुख्य बैरे को परेशान देख कर एंटोनियो ने उससे कहा, 'यदि कहें तो मैं सजाने का प्रयास करूं ।' बैरा निराश भाव से बोला, 'ठीक है, तुम ही कुछ करके देखो।' एंटोनियो ने कई किलो मक्खन मंगवाया। जमे हुए मक्खन से उसने चीते की एक आकर्षक मूर्ति बना कर टेबल पर सजा दी। लोगों ने उस मूर्ति की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
मेहमानों में मूर्तिकला का एक विशेषज्ञ भी था। जब उसे मालूम हुआ कि मूर्ति बनाने वाला कोई बड़ा कलाकार नहीं बल्कि फलेरा का नौकर है, तो वह आश्चर्य में पड़ गया। उसने एंटोनियो से पूछा, 'तुमने यह कला कहां से सीखी?' एंटोनियो ने कहा, 'मन की प्रेरणा से। पास की दुकान पर मूर्तियां बनते देख मन की प्रेरणा से थोड़ा बहुत सीख लिया।'
विशेषज्ञ ने कहा, 'आज समझ में आया कि परिस्थितियां चाहे कितनी प्रतिकूल हों पर लगन और इच्छाशक्ति से व्यक्ति कुछ भी पा सकता है।' बाद में एंटोनियो की गिनती विश्व प्रसिद्ध मूर्तिकारों में हुई।
एक बार दुकान मालिक ने उससे कहा, 'तुम यहां आकर अपना समय क्यों बर्बाद करते हो?' एंटोनियो ने कहा, 'मुझे मूर्तियां बनते देख कर अच्छा लगता है।' उसके बाद भी वहां उसका आना बदस्तूर जारी रहा। एक दिन उसके मालिक फलेरा ने कुछ लोगों को अपने यहां दावत पर बुलाया। खाने की तैयारी और दावत-स्थल की साज-सज्जा का काम मुख्य बैरे का था। सब काम ठीकठाक हो रहा था, मगर टेबल के बीच की सजावट ठीक से नहीं हो पा रही थी।
अतिथियों के आने का समय हो गया था। मुख्य बैरे को परेशान देख कर एंटोनियो ने उससे कहा, 'यदि कहें तो मैं सजाने का प्रयास करूं ।' बैरा निराश भाव से बोला, 'ठीक है, तुम ही कुछ करके देखो।' एंटोनियो ने कई किलो मक्खन मंगवाया। जमे हुए मक्खन से उसने चीते की एक आकर्षक मूर्ति बना कर टेबल पर सजा दी। लोगों ने उस मूर्ति की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
मेहमानों में मूर्तिकला का एक विशेषज्ञ भी था। जब उसे मालूम हुआ कि मूर्ति बनाने वाला कोई बड़ा कलाकार नहीं बल्कि फलेरा का नौकर है, तो वह आश्चर्य में पड़ गया। उसने एंटोनियो से पूछा, 'तुमने यह कला कहां से सीखी?' एंटोनियो ने कहा, 'मन की प्रेरणा से। पास की दुकान पर मूर्तियां बनते देख मन की प्रेरणा से थोड़ा बहुत सीख लिया।'
विशेषज्ञ ने कहा, 'आज समझ में आया कि परिस्थितियां चाहे कितनी प्रतिकूल हों पर लगन और इच्छाशक्ति से व्यक्ति कुछ भी पा सकता है।' बाद में एंटोनियो की गिनती विश्व प्रसिद्ध मूर्तिकारों में हुई।
Friday, May 7, 2010
बुद्धि की परीक्षा
एक राजा के पांच पुत्र थे। राजा को यह चिंता सताती रहती थी कि उसके बाद कौन राजगद्दी संभालेगा। एक दिन राजा ने अपने दीवान को यह समस्या बताई। दीवान ने कहा, 'महाराज, सभी राजकुमारों को मिट्टी का एक-एक कच्चा घड़ा दिया जाए और उनसे कहा जाए कि उस घड़े को ओस से भर कर लाएं। जो राजकुमार ओस भरकर ले आएगा, उसी को राजा घोषित कर दें।'
राजा को उपाय पसंद आया। उसने कच्चे घड़े मंगवाए और राजकुमारों को ओस भरकर लाने को कहा। पांचों राजकुमार अपना-अपना घड़ा लेकर चल पड़े। वे एक मैदान में पहुंचे और ओस के कण इकट्ठा करके घड़े में डालने लगे। लेकिन जैसे ही वे ओस के पानी को उसमें डालते, घड़े की कच्ची मिट्टी उसे सोख लेती। लाख प्रयत्न करने पर भी उन्हें सफलता नहीं मिली।
सबसे छोटा राजकुमार कुशाग्र बुद्धि का था। वह घड़े को लेकर पास की नदी पर गया और उसने घड़े को अच्छी तरह धोया। मिट्टी को जितना पानी सोखना था, उसने सोख लिया। इसके बाद वह घास के मैदान में गया। उसने एक कपड़े को ओस में भिगोया और घड़े में निचोड़ा। इस तरह शाम तक उसका घड़ा भर गया।
दूसरे राजकुमारों के घड़े खाली थे, सिर्फ वही घड़ा भरकर लौटा था। राजा उसकी बुद्धिमानी से प्रसन्न हुआ। वह समझ गया कि यह राजकुमार विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी युक्ति से कोई न कोई रास्ता निकाल सकता है। कुछ दिनों बाद धूमधाम से उसका राजतिलक कर दिया गया।
संकलन: ललित गर्ग
राजा को उपाय पसंद आया। उसने कच्चे घड़े मंगवाए और राजकुमारों को ओस भरकर लाने को कहा। पांचों राजकुमार अपना-अपना घड़ा लेकर चल पड़े। वे एक मैदान में पहुंचे और ओस के कण इकट्ठा करके घड़े में डालने लगे। लेकिन जैसे ही वे ओस के पानी को उसमें डालते, घड़े की कच्ची मिट्टी उसे सोख लेती। लाख प्रयत्न करने पर भी उन्हें सफलता नहीं मिली।
सबसे छोटा राजकुमार कुशाग्र बुद्धि का था। वह घड़े को लेकर पास की नदी पर गया और उसने घड़े को अच्छी तरह धोया। मिट्टी को जितना पानी सोखना था, उसने सोख लिया। इसके बाद वह घास के मैदान में गया। उसने एक कपड़े को ओस में भिगोया और घड़े में निचोड़ा। इस तरह शाम तक उसका घड़ा भर गया।
दूसरे राजकुमारों के घड़े खाली थे, सिर्फ वही घड़ा भरकर लौटा था। राजा उसकी बुद्धिमानी से प्रसन्न हुआ। वह समझ गया कि यह राजकुमार विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी युक्ति से कोई न कोई रास्ता निकाल सकता है। कुछ दिनों बाद धूमधाम से उसका राजतिलक कर दिया गया।
संकलन: ललित गर्ग
Wednesday, May 5, 2010
संगति का प्रभाव
दो तोते एक साथ बड़े हुए। बड़े होने पर भी दोनों साथ ही रहते थे। एक दिन तेज आंधी आई और वे बिछुड़ गए। एक तोता चोरों की बस्ती में जा पहुंचा और दूसरा एक ऋषि के आश्रम में चला गया।
दोनों वहीं रहने लगे। एक दिन एक राजा शिकार के लिए निकला। वह चोरों की बस्ती के पास एक सरोवर के किनारे आराम करने लगा। इतने में किसी की कर्कश वाणी सुनकर उसकी नींद टूट गई। वह आवाज एक तोते की थी, जो बोल रहा था- अरे यहां कोई है! यह गले में मोतियों और हीरों की माला पहने हुए है। इसकी गर्दन दबाकर माला निकाल लो और लाश को झाड़ी में गाड़ दो। तोते को यह सब बोलते देख राजा डर गया।
वह आगे चल पड़ा और आश्रम में पहुंच गया। ऋषि भिक्षाटन के लिए बाहर गए थे। इतने में ही वहां किसी की कोमल वाणी राजा के कानों में पड़ी। एक तोता कह रहा था- आइए श्रीमान बैठिए। ऋषिवर भिक्षाटन के लिए गए हैं। प्यास लगी हो तो ठंडा पानी पीजिए और यदि भूख लगी हो तो फल खाइए। राजा चकित होकर उसे देखने लगा। इसका रूप-रंग बिल्कुल चोरों की बस्ती में रहने वाले तोते जैसा था। थोड़ी देर बाद ऋषि आए। तब राजा ने उन्हें दोनों तोते की बातें बताई। इस पर ऋषि ने कहा, 'यह तो संगति का असर है। इसके प्रभाव से मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी तक नहीं बच पाते।'
संकलन: लखविन्दर सिंह
दोनों वहीं रहने लगे। एक दिन एक राजा शिकार के लिए निकला। वह चोरों की बस्ती के पास एक सरोवर के किनारे आराम करने लगा। इतने में किसी की कर्कश वाणी सुनकर उसकी नींद टूट गई। वह आवाज एक तोते की थी, जो बोल रहा था- अरे यहां कोई है! यह गले में मोतियों और हीरों की माला पहने हुए है। इसकी गर्दन दबाकर माला निकाल लो और लाश को झाड़ी में गाड़ दो। तोते को यह सब बोलते देख राजा डर गया।
वह आगे चल पड़ा और आश्रम में पहुंच गया। ऋषि भिक्षाटन के लिए बाहर गए थे। इतने में ही वहां किसी की कोमल वाणी राजा के कानों में पड़ी। एक तोता कह रहा था- आइए श्रीमान बैठिए। ऋषिवर भिक्षाटन के लिए गए हैं। प्यास लगी हो तो ठंडा पानी पीजिए और यदि भूख लगी हो तो फल खाइए। राजा चकित होकर उसे देखने लगा। इसका रूप-रंग बिल्कुल चोरों की बस्ती में रहने वाले तोते जैसा था। थोड़ी देर बाद ऋषि आए। तब राजा ने उन्हें दोनों तोते की बातें बताई। इस पर ऋषि ने कहा, 'यह तो संगति का असर है। इसके प्रभाव से मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी तक नहीं बच पाते।'
संकलन: लखविन्दर सिंह
Sunday, May 2, 2010
निष्ठा और ईमानदारी
फिलीपीन का एक इंजीनियर एक महत्वपूर्ण बांध बनवाने में जुटा हुआ था। बांध का जल्दी से जल्दी बनना जरूरी था, इसलिए इंजीनियर अपनी परवाह न करते हुए स्वयं भी मजदूरों के साथ लगा हुआ था। उन दिनों फिलीपीन के राष्ट्रपति रेमन मैग्सेसे थे। एक दिन वे बांध का काम देखने गए। और यह जान कर आश्चर्यचकित रह गए कि बांध को जितने समय में बनना था, वह उससे कम समय में और अनुमान से कहीं अच्छा बना था। उन्होंने जब इसका कारण जानने की कोशिश की तो पाया कि वहां का इंजीनियर स्वयं मजदूरों के साथ मिलकर काम करता था।
वे वहां का अवलोकन कर प्रसन्न मन से वापस आ गए। जब बांध के उद्घाटन का समय आया तो मैग्सेसे ने सभी कर्मचारियों को वहां बुलाया और उन्हें संबोधित करते हुए कहा, 'मैं इस बांध को शीघ्रता से और इतने अच्छे तरीके से पूर्ण कराने वाले इंजीनियर के मनोबल, निष्ठा और ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हूं और मुझे लगता है कि उनकी योग्यता एक इंजीनियर के कार्य से कहीं ज्यादा है, इसलिए मैं उन्हें आज से निर्माण विभाग का सचिव बनाता हूं।'
राष्ट्रपति की घोषणा सुनकर इंजीनियर हैरान हो गया। लेकिन सभी लोगों ने तालियां बजाकर इस घोषणा का स्वागत किया। इसके बाद मैग्सेसे ने बांध बनवाने में लगे मजदूरों को भी सम्मान दिया और बोले, हमारे देश को ऐसे ही ईमानदार व निष्ठावान व्यक्तियों की जरूरत है, जो प्रत्येक कार्य को मन और समर्पण से पूर्ण करते हैं। घोषणा सुनकर इंजीनियर बोला, मुझे काम करते समय सिर्फ यह याद रहता है कि जो कार्य मुझे सौंपा गया है या मुझे करना है वह हर हालत में सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए, क्योंकि वह सर्वश्रेष्ठ होगा तभी हमारे लिए प्रगति के द्वार खोलेगा और मेरे इसी संकल्प ने आज मुझे यहां तक पहुंचाया है। इंजीनियर का वक्तव्य सुनकर सभी लोगों ने एक बार फिर करतल ध्वनियों से उससे सहमति जताई।
वे वहां का अवलोकन कर प्रसन्न मन से वापस आ गए। जब बांध के उद्घाटन का समय आया तो मैग्सेसे ने सभी कर्मचारियों को वहां बुलाया और उन्हें संबोधित करते हुए कहा, 'मैं इस बांध को शीघ्रता से और इतने अच्छे तरीके से पूर्ण कराने वाले इंजीनियर के मनोबल, निष्ठा और ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हूं और मुझे लगता है कि उनकी योग्यता एक इंजीनियर के कार्य से कहीं ज्यादा है, इसलिए मैं उन्हें आज से निर्माण विभाग का सचिव बनाता हूं।'
राष्ट्रपति की घोषणा सुनकर इंजीनियर हैरान हो गया। लेकिन सभी लोगों ने तालियां बजाकर इस घोषणा का स्वागत किया। इसके बाद मैग्सेसे ने बांध बनवाने में लगे मजदूरों को भी सम्मान दिया और बोले, हमारे देश को ऐसे ही ईमानदार व निष्ठावान व्यक्तियों की जरूरत है, जो प्रत्येक कार्य को मन और समर्पण से पूर्ण करते हैं। घोषणा सुनकर इंजीनियर बोला, मुझे काम करते समय सिर्फ यह याद रहता है कि जो कार्य मुझे सौंपा गया है या मुझे करना है वह हर हालत में सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए, क्योंकि वह सर्वश्रेष्ठ होगा तभी हमारे लिए प्रगति के द्वार खोलेगा और मेरे इसी संकल्प ने आज मुझे यहां तक पहुंचाया है। इंजीनियर का वक्तव्य सुनकर सभी लोगों ने एक बार फिर करतल ध्वनियों से उससे सहमति जताई।
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