Tuesday, March 23, 2010

RTI: सूचना का अधिकार

आरटीआई(Right To Information) 

यानी करप्शन की काट आपके हाथ

2005 में आम नागरिकों को ऐसा हथियार मिला, जिसकी हमें काफी जरूरत थी। राइट टु इन्फर्मेशन ऐक्ट के लागू हो जाने से आम जनता को हर वो चीज जानने का अधिकार मिल गया है, जिसका संबंध उसकी जिंदगी से है। सरकारी विभागों से करप्शन का सफाया करने का भी यह अचूक हथियार है। हालांकि लोग अब भी इसके इस्तेमाल और अहमियत के बारे में ज्यादा नहीं जानते। हमारे कई रीडर्स ने हमसे कहा था कि कॉलम के जरिए आरटीआई ऐक्ट के बारे में बताएं। great-self-improvement-strategies_esm
'सूचना का अधिकार' अधिनियम 2005 भारतीय नागरिकों को संसद सदस्यों और राज्य विधानमंडल के सदस्यों के बराबर सूचना का अधिकार देता है। इस अधिनियम के अनुसार, ऐसी इन्फर्मेशन जिसे संसद या विधानमंडल सदस्यों को देने से इनकार नहीं किया जा सकता, उसे किसी आम व्यक्ति को देने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए अब अगर आपके स्कूल के टीचर हमेशा गैर-हाजिर रहते हों, आपके आसपास की सड़कें खराब हालत में हों, सरकारी अस्पतालों में मशीन खराब होने के नाम पर जांच न हो, हेल्थ सेंटरों में डॉक्टर या दवाइयां न हों, अधिकारी काम के नाम पर रिश्वत मांगें या फिर राशन की दुकान पर राशन ही न मिले तो आप सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के तहत ऐसी सूचनाएं पा सकते हैं। यह अधिकार आपको और ताकतवर बनाता है।

 
क्या है आरटीआई
सरकारी कार्यप्रणाली में खुलापन और पारदर्शिता लाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लाया गया है। यह लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत बनाने, करप्शन हटाने, जनता को अधिकारों से लैस बनाने और राष्ट्र के विकास में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने में मील का पत्थर साबित हुआ है।


अधिकार
- हर पब्लिक अथॉरिटी में एक या अधिक अधिकारियों को जन सूचना अधिकारी के रूप में अपॉइंट करना जरूरी है। आम नागरिकों द्वारा मांगी गई सूचना को समय पर उपलब्ध कराना इन अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है।
- इस अधिनियम में राइट टु इन्फर्मेशन सिर्फ भारतीय नागरिकों को ही मिला है। इसमें निगम, यूनियन, कंपनी वगैरह को सूचना देने का प्रावधान नहीं है, क्योंकि ये नागरिकों की परिभाषा में नहीं आते।
- अगर किसी निगम, यूनियन, कंपनी या एनजीओ का कर्मचारी या अधिकारी आरटीआई दाखिल करता है तो उसे सूचना दी जाएगी, बशर्ते उसने सूचना अपने नाम से मांगी हो, निगम या यूनियन के नाम पर नहीं।


कैसी इन्फर्मेशन
- जनता को किसी पब्लिक अथॉरिटी से ऐसी इन्फर्मेशन मांगने का अधिकार है जो उस अथॉरिटी के पास उपलब्ध है या उसके नियंत्रण में है। इस अधिकार में उस अथॉरिटी के पास या नियंत्रण में मौजूद कृति, दस्तावेज या रेकॉर्ड, रेकॉर्डों या दस्तावेजों के नोट्स, प्रमाणित कॉपी और दस्तावेजों के सर्टिफाइड नमूने लेना शामिल है।
- नागरिकों को डिस्क, फ्लॉपी, टेप, विडियो कैसेट या किसी और इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंटआउट के रूप में सूचना मांगने का अधिकार है। शर्त यह है कि मांगी गई सूचना उसमें पहले से मौजूद हो।
- आवेदक को सूचना आम तौर पर उसी रूप में मिलनी चाहिए जिसमें वह मांगता है। अगर कोई विशेष सूचना दिए जाने से पब्लिक अथॉरिटी के संसाधनों का गलत इस्तेमाल होने की आशंका हो या इससे रेकॉर्डों के परीक्षण में किसी नुकसान की आशंका होती है तो सूचना देने से मना किया जा सकता है।


सिविक एजेंसियों को बनाएं जवाबदेह
- अक्सर यह देखने में आता है कि तमाम सिविक एजेंसियां जैसे डीडीए, एमसीडी, एनडीएमसी, ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से जनता को ढेरों शिकायतें रहती हैं कि उनके लेटर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में आप अपनी शिकायत के कुछ समय बाद सूचना के अधिकार के तहत संबंधित विभाग से अपने लेटर पर हुई कार्रवाई की सिलसिलेवार जानकारी ले सकते हैं।
- आप किसी भी पब्लिक अथॉरिटी जैसे केंद्र या राज्य सरकार के विभागों, पंचायती राज संस्थाओं, न्यायालयों, संसद, राज्य विधायिका और दूसरे संगठनों, गैरसरकारी संगठनों सहित ऐसे सभी विभाग जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य अथवा केंद्र सरकार द्वारा स्थापित संघटित, अधिकृत, नियंत्रित अथवा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित हैं, से जानकारियां मांग सकते हैं।
- आप किसी प्राइवेट स्कूल, टेलिफोन कंपनी या बिजली कंपनी आदि से जुड़ी जानकारी पाने के लिए संबंधित विभाग से सूचना के अधिकार के तहत ऐप्लिकेशन दे सकते हैं।


कैसे भरें आरटीआई
- सूचना पाने के लिए कोई तय प्रोफार्मा नहीं है। सादे कागज पर हाथ से लिखकर या टाइप कराकर 10 रुपये की फिक्स्ड फीस के साथ अपनी ऐप्लिकेशन संबंधित अधिकारी के पास किसी भी रूप में (खुद या डाक द्वारा) जमा कर सकते हैं। किसी खास तरह से आवेदन करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
- आप हिंदी, अंग्रेजी या किसी भी स्थानीय भाषा में ऐप्लिकेशन दे सकते हैं।
- ऐप्लिकेशन फीस नकद, डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर से दी जा सकती है।
- डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर संबंधित विभाग (पब्लिक अथॉरिटी) के अकाउंट ऑफिसर के नाम पर होना चाहिए।
- डिमांड ड्राफ्ट के पीछे और पोस्टल ऑर्डर में दी गई जगह पर अपना नाम और पता जरूर लिखें।
- आरटीआई ऐक्ट जम्मू और कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है।
- अगर आप फीस नकद जमा कर रहे हैं तो रसीद जरूर ले लें।
- गरीबी रेखा के नीचे की कैटिगरी में आने वाले ऐप्लिकेंट को किसी भी तरह की फीस देने की जरूरत नहीं है। इसके लिए उसे अपना बीपीएल सर्टिफिकेट दिखाना होगा।
- सिर्फ जन सूचना अधिकारी को ऐप्लिकेशन भेजते समय ही फीस देनी होती है। पहली अपील या सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिश्नर को दूसरी अपील के लिए किसी प्रकार की फीस नहीं देनी होती।
- अगर सूचना अधिकारी आपको समय पर सूचना उपलब्ध नहीं करा पाता है और आपसे तीन दिन की समयसीमा गुजरने के बाद डॉक्युमेंट उपलब्ध कराने के नाम पर अतिरिक्त धनराशि जमा कराने के लिए कहता है तो यह गलत है। इस स्थिति में अधिकारी आपको मुफ्त डॉक्युमेंट उपलब्ध कराएगा। चाहे उनकी संख्या कितनी भी हो।
- एप्लिकेंट को सूचना मांगने के लिए कोई वजह या पर्सनल ब्यौरा देने की जरूरत नहीं है। उसे सिर्फ अपना पता देना होगा।
पोस्टल डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी
केंद्र सरकार के सभी विभागों के लिए 629 पोस्ट ऑफिसों को सहायक जन सूचना कार्यालय बनाया गया है। इसका मतलब यह है कि आप इनमें से किसी भी पोस्ट ऑफिस में जाकर इनके आरटीआई काउंटर पर फीस और ऐप्लिकेशन जमा कर सकते हैं। वे आपको रसीद और अकनॉलेजमेंट (पावती पत्र) देंगे। यह पोस्ट ऑफिस की जिम्मेदारी है कि वह आपकी ऐप्लिकेशन संबंधित सूचना अधिकारी तक पहुंचाए। पोस्ट ऑफिसों की लिस्ट  www.indiapost.gov.in पर उपलब्ध हैं।

 
इन बातों का रखें ध्यान
- आप जब भी आरटीआई के तहत जानकारी मांगें तो हमेशा संभावित जवाबों को ध्यान में रखकर अपने सवाल तैयार करें। आपका जोर ज्यादा से ज्यादा सूचना प्राप्त करने पर होना चाहिए।
- अगर अपने आवेदन में कुछ दस्तावेजों की मांग कर रहे हैं तो संभावित शुल्क पहले ही ऐप्लिकेशन शुल्क के साथ जमा कर दें। जैसे आपने चार से पांच डॉक्युमेंट मांगे हैं तो आप 10 रुपये के बजाय 20 रुपये का पोस्टल ऑर्डर, ड्राफ्ट या नकद जमा कर सकते हैं। ऐसे में सूचना अधिकारी द्वारा आपसे अतिरिक्त धनराशि मांगने और आपके द्वारा उसे जमा किए जाने में बीत रहे समय को बचाया जा सकता है।
- पोस्टल ऑर्डर में पूरी जानकारी भरकर ही संबंधित अधिकारी को भेजें। बिना नाम के पोस्टल ऑर्डर का गलत इस्तेमाल होने की संभावना के साथ-साथ जन सूचना अधिकारी द्वारा उसे लौटाया भी जा सकता है। पोस्टल ऑर्डर आप किसी भी पोस्ट ऑफिस से खरीद सकते हैं।
ऐप्लिकेशन देने के बाद
- अगर आपने अपनी ऐप्लिकेशन जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) को दी है तो वह आपको 30 दिन के अंदर सूचना मुहैया कराएगा। साथ ही उसके जवाब में प्रथम अपीलीय अधिकारी का नाम व पता भी दिया जाना जरूरी है। अगर आपने अपनी ऐप्लिकेशन सहायक सूचना अधिकारी को दी है तो उसकी समयसीमा 35 दिन है।
- ऐप्लिकेंट द्वारा मांगी गई सूचना का संबंध अगर किसी व्यक्ति की जिंदगी या आजादी से जुड़ा हो तो सूचना अधिकारी को ऐप्लिकेशन मिलने के 48 घंटों के अंदर इन्फर्मेशन देनी होगी।
- जन सूचना अधिकारी द्वारा दस्तावेज (अतिरिक्त) मुहैया कराए जाने के लिए फीस की रसीद जारी करने और आवेदक द्वारा उस फीस को जमा कराने की अवधि को उन 30 दिन की अवधि में नहीं जोड़ा जाता है।


ऐप्लिकेशन लेने से इनकार
कुछ विशेष परिस्थितियों में ही जन सूचना अधिकारी आपकी ऐप्लिकेशन लेने से इनकार कर सकता है। वे इस तरह हैं :
- अगर ऐप्लिकेशन किसी और जन सूचना अधिकारी या पब्लिक अथॉरिटी के नाम पर हो।
- अगर आप ठीक तरह से सही फीस का भुगतान न कर पाए हों।
- अगर आप गरीबी रेखा से नीचे के परिवार के सदस्य के रूप में फीस से छूट मांग रहे हैं, लेकिन इससे जुड़ा सर्टिफिकेट नहीं दे सकते।
ऐसा भी होता है
- अगर आपकी अपील पर संबंधित अधिकारी को सूचना आयोग द्वारा आर्थिक रूप से दंडित किया जाता है तो जुर्माने के रूप में उससे ली गई राशि सरकारी खजाने में जमा की जाती है। हालांकि धारा 19(8) (बी) के अंतर्गत आवेदक को किसी हानि या नुकसान के लिए मुआवजा दिया जा सकता है।
- कुछ अधिकारी ऐप्लिकेंट को मीटिंग के लिए बुलाते हैं, यह कानून पब्लिक अथॉरिटीज को मीटिंग के लिए आवेदकों को बुलाने या यहां तक कि आवेदक को व्यक्तिगत रूप से आकर मांगी गई सूचना ले जाने पर जोर देने का अधिकार नहीं देता है।
- अगर आपको ऐसा लगता है कि आपके द्वारा सूचना मांगे जाने से आपके जान-माल को खतरा हो सकता है तो आप सूचना दूसरे व्यक्ति के नाम पर मांग सकते हैं। जिसे आसानी से धमकाया नहीं जा सके या जो किसी दूर स्थान पर रहता हो।
- जहां मांगी जा रही सूचना एक से अधिक व्यक्ति को प्रभावित करती हो, तो कभी-कभी अन्य लोगों के साथ मिलकर संयुक्त रूप से सूचना मांगना बेहतर होता है, क्योंकि अधिक संख्या आपको बल और सुरक्षा देती है।
- अगर ऐप्लिकेंट पढ़ा-लिखा नहीं है तो जन सूचना अधिकारी की यह जिम्मेदारी है कि वह उसकी रिक्वेस्ट को लिखित रूप में देने में सभी प्रकार से सहायता करें।
- अगर ऐप्लिकेशन की विषयवस्तु किसी और पब्लिक अथॉरिटी से जुड़ी हो तो उस ऐप्लिकेशन को संबंधित पब्लिक अथॉरिटी को ट्रांसफर किया जाना चाहिए।
- अगर कोई आवेदक ऐसी सूचना मांगता है जो किसी तीसरी पार्टी से संबंध रखती है अथवा उसके द्वारा उपलब्ध कराई जाती है और तीसरी पार्टी ने ऐसी सूचना को गोपनीय माना है तो जन सूचना अधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह सूचना को प्रकट करने अथवा न करने पर विचार करें।
- थर्ड पार्टी में ऐसी प्राइवेट कंपनियां आती हैं, जो सरकार से मदद नहीं लेती हैं और जो सूचना के अधिकार कानून के दायरे में नहीं आती। ऐसी कंपनियों की जानकारी केवल सरकारी माध्यम से मांगी जा सकती है। लेकिन ये कंपनियां जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं।


अपील का अधिकार
- अगर किसी ऐप्लिकेंट को तय समयसीमा में सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती है या वह दी गई सूचना से संतुष्ट नहीं होता है तो वह प्रथम अपीलीय अधिकारी के सामने अपील कर सकता है।
- प्रथम अपील के लिए कोई फीस नहीं देनी होगी। अपनी ऐप्लिकेशन के साथ जन सूचना अधिकारी के जवाब और अपनी पहली ऐप्लिकेशन के साथ-साथ दूसरे जरूरी दस्तावेज अटैच करना जरूरी है।
- प्रथम अपीलीय अधिकारी रैंक में जन सूचना अधिकारी से बड़ा अधिकारी होता है। ऐसी अपील सूचना उपलब्ध कराए जाने की समयसीमा के खत्म होने या जन सूचना अधिकारी का फैसला मिलने की तारीख से 30 दिन के अंदर की जा सकती है।
- अपीलीय अधिकारी को अपील मिलने के 30 दिन के अंदर या विशेष मामलों में 45 दिन के अंदर अपील का निपटान करना जरूरी है।
दूसरी अपील एसआईसी में
अगर आपको पहली अपील दाखिल करने के 45 दिन के अंदर जवाब नहीं मिलता या आप उस जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो आप 45 दिन की अवधि समाप्त होते ही 90 दिन के अंदर राज्य सरकार की पब्लिक अथॉरिटी के लिए उस राज्य के स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन से या केंद्रीय प्राधिकरण के लिए सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन के पास दूसरी अपील दाखिल कर सकते हैं। दिल्ली के लोग दूसरी अपील सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन में ही कर सकते हैं।
- नोएडा, गाजियाबाद सहित यूपी के लोग दूसरी अपील स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन में कर सकते हैं। इनका पता है :
चीफ इन्फर्मेशन कमिश्नर, स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन, छठी मंजिल, इंदिरा भवन, लखनऊ, यूपी- 226001, फोन - 0522-2288598/ 2288599
वेबसाइट : http://upsic.up.nic.in/
- हरियाणा के लिए सेकंड अपीलीय अधिकारी स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन है। इनका पता है :
चीफ इन्फर्मेशन कमिश्नर, स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन, हरियाणा, एससीओ नं.- 70-71, सेक्टर - 8सी, चंडीगढ़, फोन - 0172-2726568
वेबसाइट : http://cicharyana.gov.in/

 
अगर फिर भी न हों संतुष्ट
- अगर प्रथम अपीलीय अधिकारी इस तय समयसीमा में कोई आदेश जारी नहीं करता या ऐप्लिकेंट प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश से संतुष्ट नहीं होता तो वह फैसला आने के 90 दिन के अंदर केंद्रीय सूचना आयोग के सामने सेकंड अपील दायर कर सकता है।
- अगर आरटीआई को जन सूचना अधिकारी रिजेक्ट कर देता है, तो ऐप्लिकेंट को वह कुछ सूचनाएं जरूर देगा। ये हैं : रिजेक्शन की वजह, उस टाइम पीरियड की जानकारी जिसमें रिजेक्शन के खिलाफ अपील दायर की जा सके और उस अधिकारी का नाम व पता (ब्यौरा) जिसके यहां इस फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है।
- सूचना का अधिकार ऐक्ट के तहत अपील पर फैसला करना एक अर्द्ध-न्यायिक काम है। इसलिए अपीलीय अधिकारी के लिए यह सुनिश्चित कराना जरूरी है कि सिर्फ न्याय हो ही नहीं, बल्कि वह होते हुए दिखाई भी दे। इसके लिए अपीलीय अधिकारी द्वारा पारित आदेश स्पीकिंग ऑर्डर होना चाहिए, जिसमें फैसले के पक्ष में तर्क भी दिए गए हों।


एक्स्ट्रा फीस
सूचना लेने के लिए आरटीआई ऐक्ट में ऐप्लिकेशन फीस के साथ एक्स्ट्रा फीस का प्रावधान भी है, जो इस तरह है :
- फोटो कॉपी किए गए हर पेज के लिए 2 रुपये।
- बड़े आकार के कागज में कॉपी की लागत कीमत।
- नमूनों या मॉडलों के लिए उसकी लागत या कीमत।
- अगर दस्तावेज देखने हैं तो पहले घंटे के लिए कोई फीस नहीं है। इसके बाद हर घंटे के लिए फीस 5 रुपये है।
- डिस्क या फ्लॉपी में सूचना लेनी है तो हर डिस्क या फ्लॉपी के लिए 50 रुपये।
जा सकते हैं केंद्रीय सूचना आयोग
आप सीधे केंद्रीय सूचना आयोग में शिकायत कर सकते हैं अगर
- आप संबंधित पब्लिक अथॉरिटी में जन सूचना अधिकारी न होने की वजह से आरटीआई नहीं डाल सकते
- केंद्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी आपकी ऐप्लिकेशन को संबंधित केंद्रीय लोक (जन) सूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी को भेजने से मना करता है
- सूचना के अधिकार एक्ट के तहत सूचना पाने की आपकी रिक्वेस्ट को ठुकरा दिया जाता है
- अधिनियम में तय समयसीमा के भीतर आपकी ऐप्लिकेशन का कोई जवाब नहीं दिया जाता है
- फीस के रूप में एक ऐसी राशि की मांग की जाती है जिसे आप उचित नहीं मानते
- लगता है कि अधूरी और बरगलाने वाली झूठी सूचना दी गई है
होगी कार्रवाई
अगर किसी शिकायत या अपील पर फैसला देते समय केंद्रीय सूचना आयोग का यह मत होता है कि केंद्रीय सूचना अधिकारी ने बिना किसी ठीक वजह के ऐप्लिकेशन को जमा करने में कोताही बरती या तय समय के भीतर सूचना नहीं दी या गलत भावना से ऐप्लिकेशन को रिजेक्ट किया या जान-बूझकर गलत व गुमराह करने वाली सूचना दी अथवा उस सूचना को नष्ट किया जिसे मांगा गया था तो आयोग उस सूचना अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश कर सकता है। इसके अलावा राज्य अथवा केंद्रीय सूचना आयोग को अधिकार है कि वह उस अधिकारी पर 250 रुपये रोजाना या अधिकतम 25,000 रुपये तक का जुर्माना भी कर सकता है।


केंद्रीय सूचना आयोग को अपील करते समय यह जानकारी दी जानी जरूरी है :
- अपील करने वाले का नाम और पता
- उस अधिकारी का नाम और पता जिसके फैसले के खिलाफ अपील की गई है
- उस आदेश की संख्या जिसके खिलाफ अपील की गई है (अगर कोई हो)
- अपील करने की वजह और उससे जुड़े फैक्ट
- मांगी गई राहत
- साथ ही उन आदेशों या दस्तावेजों की सेल्फ अटेस्टेड कॉपियां भी होनी चाहिए जिसके खिलाफ अपील की गई है और उन दस्तावेजों की कॉपी भी जिनके बारे में उसने अपील में ब्यौरा दिया है


यहां नहीं लागू होता कानून
किसी भी खुफिया एजेंसी की ऐसी जानकारियां, जिनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा हो, को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। निजी संस्थानों को भी इस दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन इन संस्थाओं की सरकार के पास उपलब्ध जानकारी को संबंधित सरकारी विभाग से प्राप्त किया जा सकता है। खुफिया एजेंसियों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन होने और इन संस्थाओं में भ्रष्टाचार के मामलों की जानकारी ली जा सकती है। अन्य देशों के साथ भारत के संबंध से जुड़े मामलों की जानकारी को भी इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।


आरटीआई ऐप्लिकेशन का सैंपल
शिकायत पर हुई कार्रवाई की स्थिति पता करने के लिए सूचना के अधिकार कानून के आवेदन का सैंपल -
सेवा में,
जन सूचना अधिकारी
परिवहन विभाग
5/9, अंडर हिल रोड
दिल्ली
विषय : सूचना का अधिकार कानून, 2005 के तहत आवेदन
महोदय,
मैंने पिछले महीने की 5 तारीख (5.2.2010) को कमिश्नर के नाम पर एक खत भेजा था (प्रति संलग्न है), लेकिन उस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। कृपया इस बारे में मुझे नीचे पूछी गई जानकारियां उपलब्ध कराएं
1. विभाग को प्राप्त होने वाली शिकायतों पर कार्रवाई के लिए क्या मापदंड तय किए गए हैं?
2. फरवरी 2010 में आपके विभाग में कितनी शिकायतें आईं और उनमें से कितनी शिकायतों पर कार्रवाई हो चुकी है और कितनी अभी पेंडिंग हैं?
3. मेरी शिकायत पर अभी तक हुई दैनिक प्रगति क्या रही और उन्होंने इस अवधि में उस पर क्या कार्रवाई की?
4. कृपया उन अधिकारियों के नाम और पद की जानकारी उपलब्ध कराएं (अगर कोई है), जिन्होंने शिकायत को लंबित रखा।
5. कार्रवाई को लंबित रखने के लिए इन अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होगी?
6. यह कार्रवाई कब की जाएगी?
7. मेरी शिकायत पर कब तक कार्रवाई हो पाएगी?
8. क्या विभाग मुझे इसकी सूचना देगा?
मैं आवेदन शुल्क के रूप में 10 रुपये का पोस्टल ऑर्डर / मनी ऑर्डर (जो भी संलग्न करना हो) संलग्न कर रहा हूं। कृपया सूचना का अधिकार ऐक्ट के अनुसार मुझे समय पर सूचना उपलब्ध कराई जाए।
आपका विश्वासी / आवेदक / भवदीय
राजकुमार चौहान
गली नं. 10, करीम नगर (निकट बिल्लू हलवाई)


इन साइटों से लें पूरी जानकारी
सूचना के अधिकार कानून से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और दूसरी सूचनाएं पाने के लिए इन वेबसाइटों पर जरूर जाएं।
http://www.rti.gov.in/
http://www.cic.gov.in/

अगर आप सूचना के अधिकार कानून की पूरी जानकारी या इसकी कॉपी चाहते हैं तो यह हिंदी व अंग्रेजी में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की वेबसाइट http://www.persmin.nic.in/ और www.righttoinformation.info पर भी उपलब्ध है।


रिऐलिटी चेक
राइट टु इन्फर्मेशन एक्ट को लेकर अधिकारियों का नजरिया नहीं बदला है। आमतौर पर डिपार्टमेंट ऐप्लिकेंट को कोई जानकारी ही नहीं देना चाहते। देखने में आया है कि ऐप्लिकेशन मिलने के बाद डिपार्टमेंट उस ऐप्लिकेंट के बारे में पूछताछ करते हैं। उस पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाते हैं। यह काम उन्हें बोझ लगता है। जबकि होना यह चाहिए वे इन ऐप्लिकेशनों का स्वागत करें। एक बार जवाब देने पर उनका डेटा अपडेट हो जाता है और भविष्य में सभी सूचनाएं देना उनके लिए आसान हो जाता है। सूचना के अधिकार से नागरिक मजबूत हुआ है, मगर अधिकारियों के नजरिए में बदलाव आना जरूरी है।
एक्सपर्ट की राय
आरटीआई एक्सपर्ट एडवोकेट पीयूष जैन के अनुसार, इस ऐक्ट से आम नागरिक अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हुआ है। ऐसे में दिल्ली का अपना राज्य आयोग न होने से सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन पर दबाव बढ़ता जा रहा है। सरकार को चाहिए कि वह अपने जन शिकायत सिस्टम को जवाबदेह बनाएं और शिकायतों के निपटाने के लिए एक समयसीमा तय करें। जैन के मुताबिक, हैरानी की बात है कि सरकार की भागीदारी में काम कर रही बिजली कंपनियां आरटीआई के दायरे से बाहर हैं। सूचना के नाम पर ऐप्लिकेंट को आधी-अधूरी जानकारी दिए जाने पर डिपार्टमेंट खुद अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करें।


आरटीआई का जादू, एक मिसाल
लेखक के घर के पास सड़क में बिजली की तारें बिछाई गईं। छह महीने तक सड़क की मरम्मत नहीं हुई। थक हारकर उन्होंने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के पब्लिक इन्फर्मेशन ऑफिसर से 'सूचना का अधिकार' ऐक्ट 2005 के तहत जानकारी मांगी। मगर उन्हें जो सूचना मिली, वह असलियत के बिल्कुल उलट थी। इसलिए उन्होंने निगम के डिप्टी कमिश्नर को पहली अपील की। डिप्टी कमिश्नर द्वारा उन्हें सुनवाई के लिए बार-बार बुलाया गया, मगर वे अफसर हमेशा नदारद मिले। दो महीने के इंतजार के बाद जब उन्हें प्रथम अपीलीय अधिकारी से कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने तमाम दस्तावेज के साथ केंद्रीय सूचना आयुक्त (सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिश्नर) को दूसरी अपील की। तय समय और तारीख पर इन्फर्मेशन कमिश्नर शैलेश गांधी के सामने दोनों पक्ष पेश हुए। तमाम डॉक्युमेंट देखने पर इन्फर्मेशन कमिश्नर ने नगर निगम के असिस्टेंट इंजीनियर को 15 दिन में लेखक द्वारा दर्शाई गई सड़कों की मरम्मत और मलबा हटाने का आदेश दिया। साथ ही एमसीडी के डिप्टी कमिश्नर को काम की उपेक्षा करने का दोषी मानते हुए अगले 20 दिनों में अपना पक्ष रखने के लिए कहा। यह आरटीआई का ही जादू है कि जो सड़क छह महीने से खुदी पड़ी थी, वह 10 दिनों में चकाचक तैयार हो गई।

1 comment:

  1. धन्यवाद श्रीमान जी बहुत अच्छी जानकारी दी आपने

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