भारतीय समाज में व्याप्त विषमताओं को देखते हुए ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट का दखल कम होना स्वाभाविक है, लेकिन इस संबंध में हुए एक सर्वे से उभर कर आए आंकड़े कुछ अतिरिक्त चिंताओं की ओर इशारा करते हैं। गांवों में टीवी और फोन का फैलाव भी शहरों की तुलना में काफी कम है, लेकिन इंटरनेट के मामले में यह फासला बाकी किसी भी चीज से कहीं ज्यादा है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया और इंडियन माकेर्टिंग रिसर्च ब्यूरो ने सात राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में कराए गए सर्वे के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि गांवों में रहने वाले 84 प्रतिशत लोगों को इंटरनेट के बारे में कोई जानकारी नहीं है। बाकी 16 प्रतिशत लोग इससे परिचित हैं और उनमें से कुछ ने जब-तब इसका इस्तेमाल भी किया है। लेकिन इसका इस्तेमाल करने वालों में भी 85 प्रतिशत लोगों की गति सिर्फ ई-मेल भेजने और पाने तक ही सीमित है। गांवों में इंटरनेट के कारोबारी उपयोग के बारे में पूछने पर 13 प्रतिशत लोगों ने बताया कि इससे उन्हें खेती से जुड़ी कुछ नई तकनीकों का पता चला, जबकि 8 प्रतिशत लोगों का कहना था कि इससे उन्हें अच्छे बीजों के बारे में जानकारी मिली।
इंटरनेट तक पहुंच न होने की वजह के बारे में ज्यादातर लोगों की राय यह थी कि ऐसी किसी चीज की उन्हें कोई जरूरत ही महसूस नहीं होती। कुछ लोगों का कहना था कि इंटरनेट के लिए जरूरी कंप्यूटर खरीदने भर को पैसे उनके पास नहीं हैं। कुछ लोगों के पास कंप्यूटर है तो केबल कनेक्शन का इंतजाम नहीं है, जबकि एक बड़ा प्रतिशत ऐसे लोगों का भी है जो इंटरनेट के बारे में इसलिए नहीं सोचते कि यह सब सोचने का फायदा क्या, जब इलाके में बिजली ही छठे-छमासे आती है। कुछ समय पहले चीन में इंटरनेट के विस्तार पर आई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि इस टेक्नॉलजी ने किस तरह वहां नकदी खेती से जुड़े किसानों और छोटे कारोबारियों की किस्मत बदल कर रख दी है। लोग वहां अपने धंधे-पानी से जुड़ी सूचनाएं इंटरनेट से प्राप्त करते हैं- सस्ता कच्चा माल कहां से लाया जाए, तैयार माल कहां बेचकर ज्यादा मुनाफा पाया जाए। यह सब अपने यहां गांवों में तो क्या, शहरों में भी कम ही देखने को मिलता है।
बैंकिंग, शेयर बाजार, रेलवे टिकट और कुछ सार्वजनिक सेवाओं को छोड़ दें तो इंटरनेट का इस्तेमाल भारत में आज भी बुद्धिविलास तक ही सीमित है। नई टेक्नॉलजी में सिर्फ मोबाइल फोन ही एक ऐसी चीज है, जिसका इस्तेमाल रिक्शा-ठेला चलाने वाले से लेकर प्लंबर- कारपेंटर तक अपने काम-धंधे में करते हैं, और जिससे अपनी आमदनी बढ़ाने में उन्हें मदद मिलती है। गांवों में भी करीब एक तिहाई आबादी मोबाइल या लैंडलाइन फोन तक अपनी पहुंच बना चुकी है। यह कहानी इंटरनेट के मामले में भी दोहराई जा सकती है, बशर्ते इससे मिल सकने वाली सूचना और ज्ञान को लोगों के धंधे-पानी का हिस्सा बनाया जा सके।