खटिया भर जगह
समस्त भारतीय! पूछने का मन करता है इन नेताओं से, क्या इन समस्त भारतीयों में मेरे घर में बर्तन मांजने वाली मेड भी आती है! पिछले 10 दिनों से मैं उसे पहले की ही तरह सर झुकाकर झाड़ू-पोंछा करते देखता आया हूं। क्या इन गर्वित भारतीयों में मेरा ड्राइवर भी आता है? पिछले 10 दिनों से वह पहले की ही तरह आंखें झुकाकर बात कर रहा है। क्या इन भारतीयों में मेरे अपार्टमेंट का गार्ड भी आता है? उसका कंधा भी मैं पहले की ही तरह झुका हुआ देख रहा हूं। ये तो फिर भी दिल्ली-नोएडा में रहने वाले लोग हैं जिनको कम से कम यह पता होगा कि दिल्ली में कोई खेल चल रहे हैं। इनके अलावा ऐसे करोड़ों भारतीय हैं जो गांवों और कस्बों में रहते हैं। जिनको पता ही नहीं होगा इन गेम्स के बारे में। इन करोड़ों लोगों के लिए देश एक ज़मीन का नाम है जहां उन्हें रहने को एक खटिया भर जगह और खाने को दो वक्त की रोटी मिल जाए तो उनका दिन बन जाता है।किसका यह देश
आज शहरों और गांवों का समृद्ध तबका कॉमनवेल्थ गेम्स में प्रदर्शन पर बाग-बाग हो रहा है। मीडिया उनकी खुशी को और भी बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहा है और मैं सोच रहा हूं कि आखिर यह हिंदुस्तान किसका है? क्या यह उनका है जो ऊंची-ऊंची इमारतों में, बिजली की रोशनी में नहाते शहरों में, फ्लाईओवरों के जालों में और कारों की कतारों में देश का विकास देखकर गदगद होते हैं? या उनका जो जंगलों में और गांवों में, टूटे-फूटे झोपड़ों में, नंगे बदन या चीथड़ों में और अल्युमिनियम के कटोरों में अपना नरक जीते हैं और उसी में मर जाते हैं? क्या यह उनका है जिनका देश की 80 प्रतिशत दौलत पर कब्जा है और जो देश की एक-एक इंच ज़मीन पर कब्जा करना चाहते हैं ताकि उससे होने वाली कमाई से अपने लिए महल खड़े कर सकें? या उनका जो अपने झोपड़े भर की जगह बचाने की कोशिश करने पर नक्सली कह कर मार दिए जाते हैं?अगर आबादी के हिसाब से देखा जाए तो क्या यह देश बहुसंख्यक हिंदुओं का है ? अगर हां तो किन हिंदुओं का ? उनका जिनके पास कृपालु और करुणामय ईश्वर का दिया हुआ सब कुछ है , या उनका जिन पर उसी दयानिधान को कभी दया नहीं आती ? उनका जिनके मुताबिक हिंदुत्व विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्म है , या उनका जिनके लिए रोटी से बड़ा कोई धर्म नहीं है ? उनका जिन्हें अपने हिंदू होने का अभिमान और अहंकार है , या उनका जिनके हिंदू होने पर इन हिंदुओं को ही शर्म आती है ? उनका जिनका सबसे बड़ा सपना अयोध्या में राम मंदिर का बनना है या उनका जिनकी जिंदगी में राम का दखल सिर्फ रमुआ या रामचरन जैसे नामों तक है ? क्या यह देश मुसलमानों का है ? अगर हां तो किन मुसलमानों का ? उनका जो इंसान से ऊपर इस्लाम को और हिंदुस्तान से ऊपर पाकिस्तान को रखते हैं या उनका जिनसे उनके इस्लामी नाम की वजह से हर कदम पर भारतीय होने का सर्टिफिकेट मांगा जाता है ?
आखिर यह देश किसका है ? उत्तर भारत के उन मुट्ठी भर लोगों का , जिन्होंने हिंदी को हिंदू और हिंदुस्तान से जोड़कर बाकी भाषाओं को सौतेली बहनों का दर्जा दे दिया है ? या उनका जो कश्मीर से कन्याकुमारी और असम से महाराष्ट्र तक अलग - अलग बोलियां बोलते हैं और हिंदी के भारी वजन से खुद को बचाने के लिए हमेशा चिंतित रहते हैं ? उनका जो महंगे स्कूलों और कॉलेजों में पढ़कर फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं और ऊंचे कनेक्शन के बल पर बड़े - बड़े सरकारी और निजी ओहदों पर आसीन हो जाते हैं ? या उनका जो नगरपालिका या सरकारी स्कूल में पढ़कर एक छोटी - सी नौकरी के लिए आवेदन पर आवेदन जमा कराते रहते हैं ?
यह देश किसका है ? उनका जो एक - एक फिल्म के लिए करोड़ों वसूलते हैं या उनका जो इनको पर्दे पर देखकर अपनी भी किस्मत किसी दिन बदलने का झूठा सपना बुनते हैं ? उनका जो खेल के मैदान पर बल्ला या रैकेट घुमाकर और कैमरों के सामने गोरा बनने की क्रीम बेचकर अरबपति बन गए हैं या उनका जो छोटा - मोटा टीवी तो क्या , एक रेडियो भी अफोर्ड नहीं कर सकते ? उनका जो मजदूर , किसान , जनता आदि के नाम पर वोट मांगते हैं मगर संसद और विधानसभाओं में जाकर धंधेबाजों , तस्करों और माफियाओं की बेशर्मी से चाकरी करते हैं , या उनका जिनके नाम पर यह सारी राजनीति चल रही है ? उनका जो विकास के नाम पर बने प्रोग्रामों में से अधिकतर हिस्सा अपनों में बांट देते हैं या उनका जिन्हें उनके अधिकार का एक - एक पैसा खैरात बोलकर दिया जाता है ?
एक यक्ष प्रश्न
कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद दिल्ली जगमगा रही है , कई चेहरों पर जीत का उत्साह है और मैं यही सोच रहा हूं कि यह देश किसका है ? इनका है या उनका है ? अगर इनका है तो वे , जिनका यह देश नहीं है , क्यों इस देश के अच्छे - बुरे की चिंता करें ? और इनका नहीं , उनका है तो वे क्यों नहीं अपना हिंदुस्तान इनसे छीन लेते ? अगर यह देश इनका भी है और उनका भी तो क्यों इनके बच्चे कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान स्टेडियम के अंदर तालियां बजा - बजाकर चियर कर रहे थे , जबकि उनके नंगधड़ंग बच्चे खेल शुरू होने से पहले ही मां - बाप के साथ दिल्ली से बाहर भेज दिए गए थे ?: नीरेंद्र नागर