Tuesday, July 12, 2011

How to Prepare for GK?


Tips and Tricks

Almost all the competitive exams have a General Awareness Section to test a candidate’s knowledge of the world around. This section evaluates the candidate’s interest in Current Affairs and General knowledge. It is considered one of the most difficult section because of no defined “syllabus”. The examiner may ask anything and everything. That is why a lot of candidates fail to score well in this section. However, there are some tested techniques that can help you prepare for GK:

Tip 1: Go Grab that New Paper

Current Affairs are nothing but awareness about what is happening around us. You must keep an eye on all the developments in the India, World at large, Sports, Economy and Entertainment. It is better to read as much as possible. However, keep in mind that you may end up wasting your time if you read useless trivia and gossip. You have to learn to avoid sections that can never be asked in exams.

Tip 2: Watch or Listen to NEWS

You should watch the news every day. You should focus on important events and happening on day to day basis. Something that you must remember: choose your source of news very carefully. We recommend watching BBC, CNN or Headlines Today. Most of the Hindi news channels are a waste of time and do not make you an informative citizen.

Tip 3: Subscribe to a Good Magazine

Educational Magazines can do a lot of good to your preparation. They give you short and crisp information that can be revised easily. We can recommend following magazines. Some of them offer an online version where you can read them for free:

  • The Competition Master
  • Competition Success Review
  • Pratiyogita Darpan

Tip 4: Concentrate on the Important Areas

All the sources above give you a wealth of information, however you need to pick topics to prepare, very carefully. Looking at the pattern of GK section of various test, you can find out that some areas are favorite and will definitely have questions based on them. We can suggest these important topics:

  • Places and Personalities in News
  • Social Development Plans (like NREGA, RTI etc)
  • Important Supreme Court Rulings
  • Awards and Honours
  • Business Mergers and Acquisitions
  • India’s Bilateral Relations and Foreign Policies

Tip 5: Take your own notes

Though is today age of internet and media, it is easy to find ready to use information. We still recommend that you take your own notes, this helps you remember them for a longer time. It is always easier to revise from your own notes than reading through all the printed material

Tip 6: Buy Good Study Material

Lst but not the least. You can buy some Good Study Material that gives you focused information on tips and tricks to clear an exam. We, at GJ Tutorial, cover all the important topics asked in almost all recruitment exams like Bank PO, Bank Clerical, SSC Recruitment etc. The notes have topics related to Maths, Reasoning, English, General

Sunday, May 1, 2011

छोटी-सी चिड़िया, जादू की पुड़िया


सांझ ढले आसमान में उड़ते पंछियों की लंबी कतारें (मानो किसी ने उन्हें एक कतार में उड़ने का आदेश दिया हो)... महानगरों में बेशक यह नजारा आमतौर पर नजर नहीं आता, लेकिन गांवों का जिक्र इसके बिना आज भी अधूरा है। इसे देखकर मोहित तो सभी होते हैं लेकिन कम ही लोग इसके पीछे के मेकनिजम को जानने-समझने की कोशिश करते हैं, मसलन कैसे सैकड़ों पंछी एक कतार में उड़ते हैं? कैसे वे साथ लैंड करते हैं और एक साथ उड़ान भरते हैं? क्या ऐसा कोई भी फैसला सामूहिक होता है या फिर उनका कोई लीडर होता है? इन तमाम सवालों का जवाब तलाशने की साइंटिस्ट लगातार कोशिश कर रहे हैं।

पंछी ही क्यों, मछलियां, चीटियां, मधुमक्खी आदि सभी एक अलग तरह की कतार या कहें कि रिद्म में चलते हैं। ऐसा लगता है कि वे एक पल में ऐसा फैसला कर लेते हैं, जिसे पूरा समूह मानने को तैयार हो जाता है और कोई विरोध नहीं करता। सामूहिक फैसले का यह तरीका हम इंसानों को हैरान करनेवाला है। 'न्यू जरनल ऑफ फिजिक्स' में छपी रिसर्च में एक खास मॉडल के जरिए यह समझाया गया है कि किस तरह चिड़ियों का पूरा समूह बिजली के तारों पर उतरता है। यह स्टडी हंगरी में की गई, जहां के वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि लैंडिंग का सामूहिक फैसला हर चिड़िया की व्यक्तिगत लैंडिंग के फैसले पर भारी पड़ता है। लीडर न होने पर लैंडिंग का फैसला किसी भी चिड़िया की व्यक्तिगत बेचैनी और उनकी उड़ने की पोजिशन पर निर्भर करता है।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि पंछियों के सामूहिक फैसले के मेकनिजम को जानकार इंसानों के सामूहिक फैसलों खासकर किसी काम को शुरू करने और खत्म करने के बारे में समझना आसान हो सकता है। इससे शेयर मार्केट में शेयरों की सामूहिक खरीद-फरोख्त को भी समझा जा सकता है। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ जिऑलजी के साइंटिस्ट मानते हैं कि किसी भी फैसले में सभी पक्षियों की राय होती है लेकिन साथ ही यह भी लगता है कि कुछ पंछी लीड करते हैं और कुछ उन्हें फॉलो करते हैं। मजेदार यह है कि समूह के मुखिया की मौत के बाद कोई जवां पंछी खुद-ब-खुद उसकी जगह ले लेता है।

वापसी का राज
पंछियों का साल भर बाद फिर अपने पुराने घोंसलों में लौट आना भी हैरान कर देनेवाला है। क्या वे कोई आंतरिक नक्शा बनाते हैं? दरअसल, लंबी दूरी की उड़ान में वे अपने थर्ड सेंस यानी सूंघने की शक्ति का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि सैकड़ों मील की दूरी तय कर पंछी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचते हैं और फिर लौट आते हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ फैयाद खुद्सर के मुताबिक, पंछियों की उड़ान को लेकर दो थ्योरी हैं, पहली : ये चांद और तारों की पोजिशन को फॉलो करते हैं और दूसरी : धरती का मैगनेटिक फील्ड इन्हें रास्ता दिखता है। इसके अलावा साथ ही, लैंड करने के बाद वे जगह-जगह पर रेकी भी करते हैं कि यहां खाना ठीक है या नहीं। यहां तक कि लंबी उड़ान के बाद जब वे किसी टापू पर उतरते हैं, तो ऐसे फल खाते हैं, जिनमें एंटी-ऑक्सिडेंट ज्यादा होते हैं, ताकि उन्हें उड़ान के लिए ताकत मिल सके और बीमारियों से दूर रह सकें। यूनिवर्सिटी ऑफ रोड आइलैंड (अमेरिका) के वैज्ञानिकों की इस स्टडी से पंछियों की समझ का नया पहलू उजागर हुआ है।

गजब की समझ
यह आम धारणा है कि परिंदे एक क्लास या समूह के तौर पर रैप्टाइल्स (रेंगनेवाले जीव) से ज्यादा समझदार होते हैं और इनकी कई प्रजातियां इस साइज के मैमल्स (स्तनधारी) के बराबर इंटेलिजेंट होती हैं। अफ्रीकी ग्रे पैरट पर की गई स्टडी बताती है कि ये तोते कुछ शब्दों का उनके मतलब के साथ मिलान कर सकते हैं और छोटे वाक्य भी बोल सकते हैं। एलेक्स नामक ग्रे पैरट को 100 से भी ज्यादा चीजों के नाम सिखाए गए। ये चीजें अलग-अलग रंगों की और अलग-अलग चीजों से बनी थीं। इसी तरह कबूतर लंबे समय के लिए बहुत सारी इमेज याद रख सकते हैं। साथ ही, वे थोड़े जटिल काम भी सीख सकते हैं और अलग-अलग स्थिति में रिस्पॉन्स करना भी सीख सकते हैं।

वैसे सभी परिंदे अपनी आवाज, गाने और बॉडी लैंग्वेज से दूसरे साथियों से संवाद कायम करते हैं। यही नहीं, बहुत पहले सीखे गए गाने वे जिंदगी भर याद रखते हैं। पक्षियों की कुछ प्रजातियां अपनी प्रजाति के खास अंदाज में गाना गाती हैं, वहीं एलियोनोरा कोकटू बर्ड तो हमारे म्यूजिक पर भी नाच सकते हैं। पंछियों की समझ का एक अच्छा उदाहरण हैं टिटहरी। यह पंछी जमीन पर घोंसला बनाता है। ऐसे में उस पर हमले का खतरा बना रहता है। कई बार कुत्ते-बिल्ली घोंसले पर हमला करने की नीयत से वहां पहुंचते हैं तो टिटहरी आसानी से उन्हें बेवकूफ बना देता है। टिटहरी घोंसले से थोड़ा दूर अपने पंखों को गिराकर इस तरह लेट जाता है, मानो वह मर चुका हो। जब हमलावर वहां पहुंचता है तो वह उठकर भाग खड़ा होता है। हमलावर उसका पीछा करने के चक्कर में घोंसले से दूर चला जाता है। इस तरह यह पक्षी अपनी और अपने घोंसले की हिफाजत अच्छी तरह कर लेता है।

यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में साइंटिस्ट फैजल मोहम्मद के मुताबिक, गौरैया आमतौर पर अनाज खाती है लेकिन अपने छोटे-छोटे बच्चों को कीड़े (टिड्डे) खिलाती है, ताकि उन्हें ज्यादा प्रोटीन मिल सके और वे जल्दी बड़े हो सकें। यह मां की ममता के साथ-साथ समझ को भी बताता है।

सुरक्षा का खास ख्याल
सामूहिक फैसलों के अलावा पंछियों में सामूहिक सुरक्षा की भावना भी खूब नजर आती है। sciencedaily.com पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर पंछी दुश्मन को देखने पर मुंह से अलग तरह की आवाज निकालते हैं। हालांकि अभी यह पूरी तरह साफ नहीं है कि वे ऐसा अपने साथियों को सचेत करने के लिए करते हैं या फिर दुश्मन को यह जताने के लिए कि मैंने तुम्हें देख लिया है। लेकिन पंछी सभी दिशाओं में बराबर आवाजें निकालते हैं, जिससे वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि ऐसी आवाजें निकालकर वे शायद अपने साथियों को खतरे का इशारा करते हैं। ऐसे भी पंछी हैं, जो अपने ग्रुप में एक-दूसरे की सुरक्षा का सीधे तौर पर ख्याल रखते हैं। ऐसा ही पंछी है पैब्लर या सेवन सिस्टर्स।

फैयाद खुद्सर के मुताबिक ये हमेशा समूह में चलते हैं और जब कुछ साथी जमीन या पत्तों पर से कीड़े तलाश रहे होते हैं, उतनी देर तक एक-दो साथी ऊपर पेड़ पर बैठकर निगरानी करते हैं। किसी भी तरह का खतरा होने पर वे अपने साथियों को आवाज दे देते हैं। इतनी देर में नीचे बैठे पैब्लर अच्छी तरह खाना खा लेते हैं। फिर वे ऊपर बैठे साथियों की जगह ले लेते हैं। हरियल (कबूतर जैसा पंछी) की खासियत यह है कि वह अपनी जिंदगी में कभी जमीन पर नहीं बैठता। वह हमेशा बड़े पेड़ों पर ऊंची टहनियों पर बैठता है। इसके पीछे क्या वजह है, इस बारे में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। हालांकि एक वजह उसके पंजों की खास बनावट भी है, फिर भी इसके पीछे सुरक्षा या दूसरे कारणों से इनकार नहीं किया जा सकता।

दुनियादारी भी
बया का नाम तो सभी ने सुना होगा। इस पंछी की खासियत यह है कि नर बया घोंसला बनाता है और आधा घोंसला बनाने के बाद वह पंख फैलाकर डांस करता है, ताकि कोई मादा उसकी ओर आकर्षित हो जाए। मादा को अगर घोंसला पसंद आता है तो वहीं रुक जाती है और नर के साथ मिलकर घोंसला पूरा करती है, वरना आगे बढ़ जाती है। बेचारे नर को उस घोंसले को छोड़कर नया घोंसला बनाता है। इस तरह एक सीजन में एक नर बया को करीब आठ-दस घोंसले बनाने पड़ते हैं। मादा बया का अपनी पसंद को इतनी अहमियत देना कहीं पंछियों के संसार के मटीरियलिज्म की बानगी तो नहीं!

वैसे, पंछियों में आपसी प्रेम की मिसालें भी खूब मिलती हैं। हॉर्नबिल ऐसा ही पंछी है। मादा हॉर्नबिल पेड़ के तने में बने कोटर में अंडा देती है तो नर हॉर्नबिल उस कोटर को मिट्टी से पूरी तरह बंद कर देता है, बस मादा हॉर्नबिल की चोंच बाहर निकली रहती है। अंदर मां सिर्फ अंडों का ख्याल रखती है। जब अंडों से बच्चे बाहर निकल आते हैं तो नर हॉर्नबिल कोटर पर से मिट्टी हटा देता है। इसी तरह, नर और मादा टील में बहुत गहरा रिश्ता होता है। नर टील इस बात का खास ख्याल रखता है कि कोई मादा टील को खा न ले या फिर दूसरा टील उसे ले न जाए। वह पूरे वक्त मादा टील पर निगाह रखता है।

मन मोहने में माहिर
इंसान ही नहीं, पक्षी भी अपनी साज-संवार का खूब ख्याल रखते हैं। यकीन न हो तो मादा फ्लैमिंगो को देखें। लगता है कि वह अपने पंखों को खूबसूरत बनाने और नर प्लैमिंगो को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपने पंखों पर नैचरल मेकअप लगाती है। ऐसा वह अपने ग्लैंड्स से निकलने वाले कलर पिग्मेंट के जरिए करती है। जानकार बताते हैं कि ब्रीडिंग पीरियड के दौरान ही उसके शरीर पर लाल धब्बे बनने लगते हैं, ताकि नर उसकी ओर आकर्षित हो सके। स्पेन में हुई एक स्टडी में यह जानकारी मिली। गाय के ऊपर चलनेवाला कैटल इग्रेड पंछी भी ब्रीडिंग पीरियड में सफेद से सुनहरा हो जाता है।

फैजल मोहम्मद का कहना है कि नर कोयल मादा का ध्यान खींचने के लिए सुरीली आवाज में गाता है। हालांकि आमतौर पर लोगों को भ्रम है कि मादा कोयल गाती है लेकिन असल में नर कोयल सुरीली तान छेड़ता है, ताकि कोई मादा उसकी ओर खिंची चली आए।

कुछ और खासियतें
- पंछी उड़ते हुए कई बार वी शेप या किसी और खास शेप में पैटर्न बनाते हैं। ऐसा वे एयर करंट का सामना करने के लिए करते हैं ताकि आराम से उड़ान भर सकें क्योंकि उड़ने में काफी मेहनत लगती है।

- आमतौर पर कतार में सबसे आगे मजबूत पंछी उड़ता है। बीच-बीच में वे जगह बदलते रहते हैं।

- एक पंछी भरतपुर से लद्दाख सात-आठ घंटे में पहुंच गया। यह जानकारी उसके पैरों में बांधे गए ट्रांसमिशन के जरिए मिली।

- पंछी 40 मील प्रति घंटे की रफ्तार से जीरो पर जा सकते हैं और हिलती हुई टहनियों पर उतर सकते हैं और वह भी कुछ पलों में।

- एक हमिंग बर्ड डेढ़ घंटे तक हवा में बिना रुके पंख फड़फड़ा सकती है। कोई और पंछी ऐसा नहीं कर सकता।

जाने कहां गए वे
पंछियों की कई प्रजातियां खत्म हो रही हैं। गिद्ध, कौवे, गौरैया अब बहुत कम नजर आते हैं। जानकारों का मानना है कि अमेरिका में सबसे ज्यादा पक्षी गायब हुए हैं। इसके अलावा इंडोनेशिया, ब्राजील और भारत के पंछियों को भी खतरा काफी ज्यादा है। लेकिन पंछियों के खत्म होने की सबसे बड़ी घटना है मुसाफिर कबूतरों (पैसेंजर पीजन) का खत्म होना। उत्तरी अमेरिका के जंगलों-पहाड़ों में अरबों मुसाफिर कबूतर (पैसेंजर पिजन) रहते थे। जब वे एक मील चौड़ाई और कई मील लंबाई वाले झुंड में उड़ते थे तो आसमान में कई घंटों के लिए अंधेरा छा जाता था। 19वीं सदी में उनकी तादाद दो सौ से पांच सौ करोड़ के बीच थी। 19वीं सदी की शुरुआत में वे खत्म हो गए, वजह वही विकास के नाम पर जंगलों का खत्म होना। यानी सबसे ज्यादा संख्या में पाया जानेवाला पक्षी भी हम इंसानों की वजह से गायब हो गया।

आंकड़ों की नजर से
- 9703 से ज्यादा प्रजातियां हैं पंछियों की दुनिया भर में
- 1-2 लाख एडल्ट पंछी होते हैं दुनिया में एक वक्त में
- 40 हजार प्रजातियां खतरे में हैं।
- 103 प्रजातियां 19वीं सदी में विलुप्त हो गईं।
- 12 फीसदी अगले सौ बरसों में खत्म हो जाएंगी।
- 182 पक्षी प्रजातियों के अगले 10 साल में खत्म होने की 50 फीसदी आशंका है।
- 680 फीसदी प्रजातियां अगले 100 साल में खत्म हो सकती हैं।

सोर्स : वर्ल्ड लाइफ इंटरनैशनल व इंटरनैशल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर

Tuesday, April 12, 2011

न्यायपूर्ण बंटवारे से मिलेगी बिजली

इस समय देश की लगभग तिहाई जनता को बिजली उपलब्ध नहीं है। धारणा है कि उत्पादन बढ़ा दिया जाए तो गरीब को भी बिजली उपलब्ध हो जाएगी।

देश में लगभग चार करोड़ लोगों के घरों में बिजली नहीं पहुंची है। इन्हें 30 यूनिट प्रतिमाह की न्यूनतम बिजली उपलब्ध कराने के लिये प्रति माह 1.2 अरब यूनिट बिजली की आवश्यकता है। अभी देश में बिजली का उत्पादन लगभग 67 अरब यूनिट प्रति माह है, यानी उपलब्ध बिजली में से केवल दो प्रतिशत बिजली ही सभी घरों को बिजली उपलब्ध कराने के लिये पर्याप्त है।

समस्या यह है कि उपलब्ध बिजली का उपयोग संभ्रांत वर्ग की असीमित विलासिता को पूरा करने के लिये किया जा रहा है। परिणामस्वरूप गरीब के घर पहुंचाने के लिये बिजली बचती ही नहीं। इस प्रकार संकट बिजली के उत्पादन से अधिक उसके दुरुपयोग का है

गरीब द्वारा बिजली की खपत लाइट, फैन, डेजर्ट कूलर, फ्रिज तथा टीवी के लिए की जाती है। इससे जीवन स्तर में सुधार होता है। परंतु इसके आगे एयर कंडीशनर, वॉशिंग मशीन, डिश वॉशर, फ्रीजर, गीजर, रिफ्लेक्टेड लाइटिंग आदि से जीवन स्तर ज्यादा सुधरता नहीं दिखता।

सवाल खपत में संतुलन कायम करने का है। ओवरईटिंग करने वाले की खुराक काट कर भूखे गरीब को दे दी जाये तो दोनों सुखी हो जाएंगे। बिजली का बंटवारा कुछ इसी प्रकार करने की जरूरत है। अमीर यदि एयरकंडीशन कमरे से बाहर निकलकर सैर करे तो उसका स्वास्थ भी सुधरेगा और गरीब को बिजली भी उपलब्ध हो जाएगी।

अंतत: धरती मां की बिजली उपजाने की क्षमता सीमित है। थर्मल बिजली से जंगल कटते हैं, न्यूक्लियर बिजली से रिसाव के खतरे उत्पन्न होते हैं, जल विद्युत के उत्पादन में नदी का पानी सड़ता है, जिससे बनने वाली मीथेन गैस कार्बन डाई ऑक्साइड से भी ज्यादा जहरीली होती है। फिर भी हम बिजली का उत्पादन उत्तरोत्तर बढ़ाने को उद्यत हैं, क्योंकि भ्रम यह है कि स्टैंडर्ड बढ़ाने के लिये बिजली जरूरी है। हमें इस भ्रम से उबरना चाहिए। सेवा क्षेत्र के माध्यम से आर्थिक विकास हासिल करना चाहिए और उपलब्ध बिजली का न्यापूर्ण वितरण करके बिजली की खपत बढ़ाए बिना प्रगति के रास्ते पर अग्रसर होना चाहिए। महानगरों में वातानुकूलित शॉपिंग सेंटर चलाने के लिये अपने पर्यावरण और संस्कृति को अनायास ही दांव पर लगाने का कोई औचित्य नहीं है।

(NBT)

Friday, January 7, 2011

10 Deadly Sins of Negative Thinking

  • I will be happy once I have _____ (or once I earn X).
    Problem: If you think you can’t be happy until you reach a certain point, or until you reach a certain income, or have a certain type of house or car or computer setup, you’ll never be happy. That elusive goal is always just out of reach. Once we reach those goals, we are not satisfied — we want more.

    Solution: Learn to be happy with what you have, where you are, and who you are, right at this moment. Happiness doesn’t have to be some state that we want to get to eventually — it can be found right now. Learn to count your blessings, and see the positive in your situation. This might sound simplistic, but it works.
    •  I wish I were as ____ as (a celebrity, friend, co-worker).
      Problem: We’ll never be as pretty, as talented, as rich, as sculpted, as cool, as everyone else. There will always be someone better, if you look hard enough. Therefore, if we compare ourselves to others like this, we will always pale, and will always fail, and will always feel bad about ourselves. This is no way to be happy.

      Solution: Stop comparing yourself to others, and look instead at yourself — what are your strengths, your accomplishments, your successes, however small? What do you love about yourself? Learn to love who you are, right now, not who you want to become. There is good in each of us, love in each of us, and a wonderful human spirit in every one of us.

      • Seeing others becoming successful makes me jealous and resentful.
      Problem: First, this assumes that only a small number of people can be successful. In truth, many, many people can be successful — in different ways.

      Solution: Learn to admire the success of others, and learn from it, and be happy for them, by empathizing with them and understanding what it must be like to be them. And then turn away from them, and look at yourself — you can be successful too, in whatever you choose to do. And even more, you already are successful. Look not at those above you in the social ladder, but those below you — there are always millions of people worse off than you, people who couldn’t even read this article or afford a computer. In that light, you are a huge success.

      • I am a miserable failure — I can’t seem to do anything right.
      Problem: Everyone is a failure, if you look at it in certain ways. Everyone has failed, many times, at different things. I have certainly failed so many times I cannot count them — and I continue to fail, daily. However, looking at your failures as failures only makes you feel bad about yourself. By thinking in this way, we will have a negative self-image and never move on from here.

      Solution: See your successes and ignore your failures. Look back on your life, in the last month, or year, or 5 years. And try to remember your successes. If you have trouble with this, start documenting them — keep a success journal, either in a notebook or online. Document your success each day, or each week. When you look back at what you’ve accomplished, over a year, you will be amazed. It’s an incredibly positive feeling.

      • I’m going to beat so-and-so no matter what — I’m better than him. And there’s no way I’ll help him succeed — he might beat me.
      Problem: Competitiveness assumes that there is a small amount of gold to be had, and I need to get it before he does. It makes us into greedy, back-stabbing, hurtful people. We try to claw our way over people to get to success, because of our competitive feelings. For example, if a blogger wants to have more subscribers than another blogger, he may never link to or mention that other blogger. However, who is to say that my subscribers can’t also be yours? People can read and subscribe to more than one blog.

      Solution: Learn to see success as something that can be shared, and learn that if we help each other out, we can each have a better chance to be successful. Two people working towards a common goal are better than two people trying to beat each other up to get to that goal. There is more than enough success to go around. Learn to think in terms of abundance rather than scarcity.

      • Dammit! Why do these bad things always happen to me?
      Problem: Bad things happen to everybody. If we dwell on them, they will frustrate us and bring us down.

      Solution: See bad things as a part of the ebb and flow of life. Suffering is a part of the human condition — but it passes. All pain goes away, eventually. Meanwhile, don’t let it hold you back. Don’t dwell on bad things, but look forward towards something good in your future. And learn to take the bad things in stride, and learn from them. Bad things are actually opportunities to grow and learn and get stronger, in disguise.

      •  You can’t do anything right! Why can’t you be like ____ ?
      Problem: This can be said to your child or your subordinate or your sibling. The problem? Comparing two people, first of all, is always a fallacy. People are different, with different ways of doing things, different strengths and weaknesses, different human characteristics. If we were all the same, we’d be robots. Second, saying negative things like this to another person never helps the situation. It might make you feel better, and more powerful, but in truth, it hurts your relationship, it will actually make you feel negative, and it will certainly make the other person feel negative and more likely to continue negative behavior. Everyone loses.

      Solution: Take the mistakes or bad behavior of others as an opportunity to teach. Show them how to do something. Second, praise them for their positive behavior, and encourage their success. Last, and most important, love them for who they are, and celebrate their differences.

      • Your work sucks. It’s super lame. You are a moron and I hope you never reproduce.
      Problem: I’ve actually gotten this comment before. It feels wonderful. However, let’s look at it not from the perspective of the person receiving this kind of comment but from the perspective of the person giving it. How does saying something negative like this help you? I guess it might feel good to vent if you feel like your time has been wasted. But really, how much of your time has been wasted? A few minutes? And whose fault is that? The bloggers or yours? In truth, making negative comments just keeps you in a negative mindset. It’s also not a good way to make friends.

      Solution: Learn to offer constructive solutions, first of all. Instead of telling someone their blog sucks, or that a post is lame, offer some specific suggestions for improvement. Help them get better. If you are going to take the time to make a comment, make it worth your time. Second, learn to interact with people in a more positive way — it makes others feel good and it makes you feel better about yourself. And you can make some great friends this way. That’s a good thing.

      • Insulting People Back
      Problem: If someone insults you or angers you in some way, insulting them back and continuing your anger only transfers their problem to you. This person was probably having a bad day (or a bad year) and took it out on you for some reason. If you reciprocate, you are now having a bad day too. His problem has become yours. Not only that, but the cycle of insults can get worse and worse until it results in violence or other negative consequences — for both of you.

      Solution: Let the insults or negative comments of others slide off you like Teflon. Don’t let their problem become yours. In fact, try to understand their problem more — why would someone say something like that? What problems are they going through? Having a little empathy for someone not only makes you understand that their comment is not about you, but it can make you feel and act in a positive manner towards them — and make you feel better about yourself in the process.

      • I don’t think I can do this — I don’t have enough discipline. Maybe some other time.
      Problem: If you don’t think you can do something, you probably won’t. Especially for the big stuff. Discipline has nothing to do with it — motivation and focus has everything to do with it. And if you put stuff off for “some other time”, you’ll never get it done. Negative thinking like this inhibits us from accomplishing anything.

      Solution: Turn your thinking around: you can do this! You don’t need discipline. Find ways to make yourself a success at your goal. If you fail, learn from your mistakes, and try again. Instead of putting a goal off for later, start now. And focus on one goal at a time, putting all of your energy into it, and getting as much help from others as you can. You can really move mountains if you start with positive thinking.