Tuesday, April 12, 2011

न्यायपूर्ण बंटवारे से मिलेगी बिजली

इस समय देश की लगभग तिहाई जनता को बिजली उपलब्ध नहीं है। धारणा है कि उत्पादन बढ़ा दिया जाए तो गरीब को भी बिजली उपलब्ध हो जाएगी।

देश में लगभग चार करोड़ लोगों के घरों में बिजली नहीं पहुंची है। इन्हें 30 यूनिट प्रतिमाह की न्यूनतम बिजली उपलब्ध कराने के लिये प्रति माह 1.2 अरब यूनिट बिजली की आवश्यकता है। अभी देश में बिजली का उत्पादन लगभग 67 अरब यूनिट प्रति माह है, यानी उपलब्ध बिजली में से केवल दो प्रतिशत बिजली ही सभी घरों को बिजली उपलब्ध कराने के लिये पर्याप्त है।

समस्या यह है कि उपलब्ध बिजली का उपयोग संभ्रांत वर्ग की असीमित विलासिता को पूरा करने के लिये किया जा रहा है। परिणामस्वरूप गरीब के घर पहुंचाने के लिये बिजली बचती ही नहीं। इस प्रकार संकट बिजली के उत्पादन से अधिक उसके दुरुपयोग का है

गरीब द्वारा बिजली की खपत लाइट, फैन, डेजर्ट कूलर, फ्रिज तथा टीवी के लिए की जाती है। इससे जीवन स्तर में सुधार होता है। परंतु इसके आगे एयर कंडीशनर, वॉशिंग मशीन, डिश वॉशर, फ्रीजर, गीजर, रिफ्लेक्टेड लाइटिंग आदि से जीवन स्तर ज्यादा सुधरता नहीं दिखता।

सवाल खपत में संतुलन कायम करने का है। ओवरईटिंग करने वाले की खुराक काट कर भूखे गरीब को दे दी जाये तो दोनों सुखी हो जाएंगे। बिजली का बंटवारा कुछ इसी प्रकार करने की जरूरत है। अमीर यदि एयरकंडीशन कमरे से बाहर निकलकर सैर करे तो उसका स्वास्थ भी सुधरेगा और गरीब को बिजली भी उपलब्ध हो जाएगी।

अंतत: धरती मां की बिजली उपजाने की क्षमता सीमित है। थर्मल बिजली से जंगल कटते हैं, न्यूक्लियर बिजली से रिसाव के खतरे उत्पन्न होते हैं, जल विद्युत के उत्पादन में नदी का पानी सड़ता है, जिससे बनने वाली मीथेन गैस कार्बन डाई ऑक्साइड से भी ज्यादा जहरीली होती है। फिर भी हम बिजली का उत्पादन उत्तरोत्तर बढ़ाने को उद्यत हैं, क्योंकि भ्रम यह है कि स्टैंडर्ड बढ़ाने के लिये बिजली जरूरी है। हमें इस भ्रम से उबरना चाहिए। सेवा क्षेत्र के माध्यम से आर्थिक विकास हासिल करना चाहिए और उपलब्ध बिजली का न्यापूर्ण वितरण करके बिजली की खपत बढ़ाए बिना प्रगति के रास्ते पर अग्रसर होना चाहिए। महानगरों में वातानुकूलित शॉपिंग सेंटर चलाने के लिये अपने पर्यावरण और संस्कृति को अनायास ही दांव पर लगाने का कोई औचित्य नहीं है।

(NBT)