Sunday, May 1, 2011

छोटी-सी चिड़िया, जादू की पुड़िया


सांझ ढले आसमान में उड़ते पंछियों की लंबी कतारें (मानो किसी ने उन्हें एक कतार में उड़ने का आदेश दिया हो)... महानगरों में बेशक यह नजारा आमतौर पर नजर नहीं आता, लेकिन गांवों का जिक्र इसके बिना आज भी अधूरा है। इसे देखकर मोहित तो सभी होते हैं लेकिन कम ही लोग इसके पीछे के मेकनिजम को जानने-समझने की कोशिश करते हैं, मसलन कैसे सैकड़ों पंछी एक कतार में उड़ते हैं? कैसे वे साथ लैंड करते हैं और एक साथ उड़ान भरते हैं? क्या ऐसा कोई भी फैसला सामूहिक होता है या फिर उनका कोई लीडर होता है? इन तमाम सवालों का जवाब तलाशने की साइंटिस्ट लगातार कोशिश कर रहे हैं।

पंछी ही क्यों, मछलियां, चीटियां, मधुमक्खी आदि सभी एक अलग तरह की कतार या कहें कि रिद्म में चलते हैं। ऐसा लगता है कि वे एक पल में ऐसा फैसला कर लेते हैं, जिसे पूरा समूह मानने को तैयार हो जाता है और कोई विरोध नहीं करता। सामूहिक फैसले का यह तरीका हम इंसानों को हैरान करनेवाला है। 'न्यू जरनल ऑफ फिजिक्स' में छपी रिसर्च में एक खास मॉडल के जरिए यह समझाया गया है कि किस तरह चिड़ियों का पूरा समूह बिजली के तारों पर उतरता है। यह स्टडी हंगरी में की गई, जहां के वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि लैंडिंग का सामूहिक फैसला हर चिड़िया की व्यक्तिगत लैंडिंग के फैसले पर भारी पड़ता है। लीडर न होने पर लैंडिंग का फैसला किसी भी चिड़िया की व्यक्तिगत बेचैनी और उनकी उड़ने की पोजिशन पर निर्भर करता है।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि पंछियों के सामूहिक फैसले के मेकनिजम को जानकार इंसानों के सामूहिक फैसलों खासकर किसी काम को शुरू करने और खत्म करने के बारे में समझना आसान हो सकता है। इससे शेयर मार्केट में शेयरों की सामूहिक खरीद-फरोख्त को भी समझा जा सकता है। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ जिऑलजी के साइंटिस्ट मानते हैं कि किसी भी फैसले में सभी पक्षियों की राय होती है लेकिन साथ ही यह भी लगता है कि कुछ पंछी लीड करते हैं और कुछ उन्हें फॉलो करते हैं। मजेदार यह है कि समूह के मुखिया की मौत के बाद कोई जवां पंछी खुद-ब-खुद उसकी जगह ले लेता है।

वापसी का राज
पंछियों का साल भर बाद फिर अपने पुराने घोंसलों में लौट आना भी हैरान कर देनेवाला है। क्या वे कोई आंतरिक नक्शा बनाते हैं? दरअसल, लंबी दूरी की उड़ान में वे अपने थर्ड सेंस यानी सूंघने की शक्ति का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि सैकड़ों मील की दूरी तय कर पंछी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचते हैं और फिर लौट आते हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ फैयाद खुद्सर के मुताबिक, पंछियों की उड़ान को लेकर दो थ्योरी हैं, पहली : ये चांद और तारों की पोजिशन को फॉलो करते हैं और दूसरी : धरती का मैगनेटिक फील्ड इन्हें रास्ता दिखता है। इसके अलावा साथ ही, लैंड करने के बाद वे जगह-जगह पर रेकी भी करते हैं कि यहां खाना ठीक है या नहीं। यहां तक कि लंबी उड़ान के बाद जब वे किसी टापू पर उतरते हैं, तो ऐसे फल खाते हैं, जिनमें एंटी-ऑक्सिडेंट ज्यादा होते हैं, ताकि उन्हें उड़ान के लिए ताकत मिल सके और बीमारियों से दूर रह सकें। यूनिवर्सिटी ऑफ रोड आइलैंड (अमेरिका) के वैज्ञानिकों की इस स्टडी से पंछियों की समझ का नया पहलू उजागर हुआ है।

गजब की समझ
यह आम धारणा है कि परिंदे एक क्लास या समूह के तौर पर रैप्टाइल्स (रेंगनेवाले जीव) से ज्यादा समझदार होते हैं और इनकी कई प्रजातियां इस साइज के मैमल्स (स्तनधारी) के बराबर इंटेलिजेंट होती हैं। अफ्रीकी ग्रे पैरट पर की गई स्टडी बताती है कि ये तोते कुछ शब्दों का उनके मतलब के साथ मिलान कर सकते हैं और छोटे वाक्य भी बोल सकते हैं। एलेक्स नामक ग्रे पैरट को 100 से भी ज्यादा चीजों के नाम सिखाए गए। ये चीजें अलग-अलग रंगों की और अलग-अलग चीजों से बनी थीं। इसी तरह कबूतर लंबे समय के लिए बहुत सारी इमेज याद रख सकते हैं। साथ ही, वे थोड़े जटिल काम भी सीख सकते हैं और अलग-अलग स्थिति में रिस्पॉन्स करना भी सीख सकते हैं।

वैसे सभी परिंदे अपनी आवाज, गाने और बॉडी लैंग्वेज से दूसरे साथियों से संवाद कायम करते हैं। यही नहीं, बहुत पहले सीखे गए गाने वे जिंदगी भर याद रखते हैं। पक्षियों की कुछ प्रजातियां अपनी प्रजाति के खास अंदाज में गाना गाती हैं, वहीं एलियोनोरा कोकटू बर्ड तो हमारे म्यूजिक पर भी नाच सकते हैं। पंछियों की समझ का एक अच्छा उदाहरण हैं टिटहरी। यह पंछी जमीन पर घोंसला बनाता है। ऐसे में उस पर हमले का खतरा बना रहता है। कई बार कुत्ते-बिल्ली घोंसले पर हमला करने की नीयत से वहां पहुंचते हैं तो टिटहरी आसानी से उन्हें बेवकूफ बना देता है। टिटहरी घोंसले से थोड़ा दूर अपने पंखों को गिराकर इस तरह लेट जाता है, मानो वह मर चुका हो। जब हमलावर वहां पहुंचता है तो वह उठकर भाग खड़ा होता है। हमलावर उसका पीछा करने के चक्कर में घोंसले से दूर चला जाता है। इस तरह यह पक्षी अपनी और अपने घोंसले की हिफाजत अच्छी तरह कर लेता है।

यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में साइंटिस्ट फैजल मोहम्मद के मुताबिक, गौरैया आमतौर पर अनाज खाती है लेकिन अपने छोटे-छोटे बच्चों को कीड़े (टिड्डे) खिलाती है, ताकि उन्हें ज्यादा प्रोटीन मिल सके और वे जल्दी बड़े हो सकें। यह मां की ममता के साथ-साथ समझ को भी बताता है।

सुरक्षा का खास ख्याल
सामूहिक फैसलों के अलावा पंछियों में सामूहिक सुरक्षा की भावना भी खूब नजर आती है। sciencedaily.com पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर पंछी दुश्मन को देखने पर मुंह से अलग तरह की आवाज निकालते हैं। हालांकि अभी यह पूरी तरह साफ नहीं है कि वे ऐसा अपने साथियों को सचेत करने के लिए करते हैं या फिर दुश्मन को यह जताने के लिए कि मैंने तुम्हें देख लिया है। लेकिन पंछी सभी दिशाओं में बराबर आवाजें निकालते हैं, जिससे वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि ऐसी आवाजें निकालकर वे शायद अपने साथियों को खतरे का इशारा करते हैं। ऐसे भी पंछी हैं, जो अपने ग्रुप में एक-दूसरे की सुरक्षा का सीधे तौर पर ख्याल रखते हैं। ऐसा ही पंछी है पैब्लर या सेवन सिस्टर्स।

फैयाद खुद्सर के मुताबिक ये हमेशा समूह में चलते हैं और जब कुछ साथी जमीन या पत्तों पर से कीड़े तलाश रहे होते हैं, उतनी देर तक एक-दो साथी ऊपर पेड़ पर बैठकर निगरानी करते हैं। किसी भी तरह का खतरा होने पर वे अपने साथियों को आवाज दे देते हैं। इतनी देर में नीचे बैठे पैब्लर अच्छी तरह खाना खा लेते हैं। फिर वे ऊपर बैठे साथियों की जगह ले लेते हैं। हरियल (कबूतर जैसा पंछी) की खासियत यह है कि वह अपनी जिंदगी में कभी जमीन पर नहीं बैठता। वह हमेशा बड़े पेड़ों पर ऊंची टहनियों पर बैठता है। इसके पीछे क्या वजह है, इस बारे में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। हालांकि एक वजह उसके पंजों की खास बनावट भी है, फिर भी इसके पीछे सुरक्षा या दूसरे कारणों से इनकार नहीं किया जा सकता।

दुनियादारी भी
बया का नाम तो सभी ने सुना होगा। इस पंछी की खासियत यह है कि नर बया घोंसला बनाता है और आधा घोंसला बनाने के बाद वह पंख फैलाकर डांस करता है, ताकि कोई मादा उसकी ओर आकर्षित हो जाए। मादा को अगर घोंसला पसंद आता है तो वहीं रुक जाती है और नर के साथ मिलकर घोंसला पूरा करती है, वरना आगे बढ़ जाती है। बेचारे नर को उस घोंसले को छोड़कर नया घोंसला बनाता है। इस तरह एक सीजन में एक नर बया को करीब आठ-दस घोंसले बनाने पड़ते हैं। मादा बया का अपनी पसंद को इतनी अहमियत देना कहीं पंछियों के संसार के मटीरियलिज्म की बानगी तो नहीं!

वैसे, पंछियों में आपसी प्रेम की मिसालें भी खूब मिलती हैं। हॉर्नबिल ऐसा ही पंछी है। मादा हॉर्नबिल पेड़ के तने में बने कोटर में अंडा देती है तो नर हॉर्नबिल उस कोटर को मिट्टी से पूरी तरह बंद कर देता है, बस मादा हॉर्नबिल की चोंच बाहर निकली रहती है। अंदर मां सिर्फ अंडों का ख्याल रखती है। जब अंडों से बच्चे बाहर निकल आते हैं तो नर हॉर्नबिल कोटर पर से मिट्टी हटा देता है। इसी तरह, नर और मादा टील में बहुत गहरा रिश्ता होता है। नर टील इस बात का खास ख्याल रखता है कि कोई मादा टील को खा न ले या फिर दूसरा टील उसे ले न जाए। वह पूरे वक्त मादा टील पर निगाह रखता है।

मन मोहने में माहिर
इंसान ही नहीं, पक्षी भी अपनी साज-संवार का खूब ख्याल रखते हैं। यकीन न हो तो मादा फ्लैमिंगो को देखें। लगता है कि वह अपने पंखों को खूबसूरत बनाने और नर प्लैमिंगो को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपने पंखों पर नैचरल मेकअप लगाती है। ऐसा वह अपने ग्लैंड्स से निकलने वाले कलर पिग्मेंट के जरिए करती है। जानकार बताते हैं कि ब्रीडिंग पीरियड के दौरान ही उसके शरीर पर लाल धब्बे बनने लगते हैं, ताकि नर उसकी ओर आकर्षित हो सके। स्पेन में हुई एक स्टडी में यह जानकारी मिली। गाय के ऊपर चलनेवाला कैटल इग्रेड पंछी भी ब्रीडिंग पीरियड में सफेद से सुनहरा हो जाता है।

फैजल मोहम्मद का कहना है कि नर कोयल मादा का ध्यान खींचने के लिए सुरीली आवाज में गाता है। हालांकि आमतौर पर लोगों को भ्रम है कि मादा कोयल गाती है लेकिन असल में नर कोयल सुरीली तान छेड़ता है, ताकि कोई मादा उसकी ओर खिंची चली आए।

कुछ और खासियतें
- पंछी उड़ते हुए कई बार वी शेप या किसी और खास शेप में पैटर्न बनाते हैं। ऐसा वे एयर करंट का सामना करने के लिए करते हैं ताकि आराम से उड़ान भर सकें क्योंकि उड़ने में काफी मेहनत लगती है।

- आमतौर पर कतार में सबसे आगे मजबूत पंछी उड़ता है। बीच-बीच में वे जगह बदलते रहते हैं।

- एक पंछी भरतपुर से लद्दाख सात-आठ घंटे में पहुंच गया। यह जानकारी उसके पैरों में बांधे गए ट्रांसमिशन के जरिए मिली।

- पंछी 40 मील प्रति घंटे की रफ्तार से जीरो पर जा सकते हैं और हिलती हुई टहनियों पर उतर सकते हैं और वह भी कुछ पलों में।

- एक हमिंग बर्ड डेढ़ घंटे तक हवा में बिना रुके पंख फड़फड़ा सकती है। कोई और पंछी ऐसा नहीं कर सकता।

जाने कहां गए वे
पंछियों की कई प्रजातियां खत्म हो रही हैं। गिद्ध, कौवे, गौरैया अब बहुत कम नजर आते हैं। जानकारों का मानना है कि अमेरिका में सबसे ज्यादा पक्षी गायब हुए हैं। इसके अलावा इंडोनेशिया, ब्राजील और भारत के पंछियों को भी खतरा काफी ज्यादा है। लेकिन पंछियों के खत्म होने की सबसे बड़ी घटना है मुसाफिर कबूतरों (पैसेंजर पीजन) का खत्म होना। उत्तरी अमेरिका के जंगलों-पहाड़ों में अरबों मुसाफिर कबूतर (पैसेंजर पिजन) रहते थे। जब वे एक मील चौड़ाई और कई मील लंबाई वाले झुंड में उड़ते थे तो आसमान में कई घंटों के लिए अंधेरा छा जाता था। 19वीं सदी में उनकी तादाद दो सौ से पांच सौ करोड़ के बीच थी। 19वीं सदी की शुरुआत में वे खत्म हो गए, वजह वही विकास के नाम पर जंगलों का खत्म होना। यानी सबसे ज्यादा संख्या में पाया जानेवाला पक्षी भी हम इंसानों की वजह से गायब हो गया।

आंकड़ों की नजर से
- 9703 से ज्यादा प्रजातियां हैं पंछियों की दुनिया भर में
- 1-2 लाख एडल्ट पंछी होते हैं दुनिया में एक वक्त में
- 40 हजार प्रजातियां खतरे में हैं।
- 103 प्रजातियां 19वीं सदी में विलुप्त हो गईं।
- 12 फीसदी अगले सौ बरसों में खत्म हो जाएंगी।
- 182 पक्षी प्रजातियों के अगले 10 साल में खत्म होने की 50 फीसदी आशंका है।
- 680 फीसदी प्रजातियां अगले 100 साल में खत्म हो सकती हैं।

सोर्स : वर्ल्ड लाइफ इंटरनैशनल व इंटरनैशल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर