Thursday, February 4, 2010

सेवा का रास्ता

ऑस्ट्रिया में पैस्टोला नामक एक छात्र डॉक्टरी पढ़ रहा था। एक दिन जब वह कहीं जा रहा था, तो रास्ते में उसे एक बच्चा मिला। एक छोटे से बच्चे
को अकेला देखकर पैस्टोला ने उसे अपने साथ ले लिया। उसने उसके अभिभावकों को खोजने के लिए पुलिस में सूचना दी

काफी दिनों तक जब बच्चे के अभिभावकों का कुछ पता न चला तो पैस्टोला ने उसे एक अनाथालय में रखवा दिया। पर उसे उस बालक से बेहद लगाव हो गया था, इसलिए वह अक्सर उसे अनाथालय में देखने आता और उसके लिए कुछ उपहार भी लाता। धीरे-धीरे पैस्टोला ने नोट किया कि अनाथालय में बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था तो है, लेकिन वहां के कर्मचारियों में दयाभाव नहीं है। इसलिए बच्चे उन कर्मचारियों के संरक्षण में ढंग से विकसित नहीं हो पा रहे हैं।

पैस्टोला ने अपनी पढ़ाई खत्म होते ही एक आंदोलन चलाया और नि:संतान तथा छोटी गृहस्थी वाले लोगों से अनुरोध किया कि वे अनाथ बच्चों को अपने परिवार में सम्मिलित कर लें और उन्हें लाड़-प्यार से पालें। ऐसा करने से बच्चों का समुचित विकास हो पाएगा और उन्हें जीने की राह मिल पाएगी। पैस्टोला के इस आंदोलन का लोगों पर सकारात्मक असर हुआ। अनेक उदार, धनी व शिक्षित लोगों ने ऐसे असहाय बच्चों को अपने परिवार में शामिल कर लिया। आत्मीयता एवं अपनत्व भरे माहौल में उन बच्चों का विकास होने लगा।

पैस्टोला ने उन अनाथ बच्चों की देख-रेख में अपना जीवन लगा दिया। वह आजीवन अविवाहित रहा। पैस्टोला ने अनाथ बच्चों का पालन-पोषण करने के अलावा विधवाओं व वृद्धाओं की भी नि:स्वार्थ मदद की। अपनी पूरी आमदनी उसने जरूरतमंदों पर लगाई। पैस्टोला की प्रेरणा से अनेक उदार लोगों ने भी अपने परिवारों में निराश्रितों को सम्मिलित किया। धीरे-धीरे यह आंदोलन दूर-दूर तक फैल गया। पैस्टोला के काम कई लोगों ने हाथ में ले लिया। आज भी ऑस्ट्रिया के अनेक लोग पैस्टोला के बताए रास्ते पर चल रहे है और असहायों की मदद कर रहे हैं।

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