Wednesday, February 24, 2010

स्वभाव की झलक

एक बार गुरु नानक देव किसी शहर में पहुंचे। वहां उनका प्रवचन सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। हर वर्ग, जाति और धर्म के लोगों ने उनके उपदेश का
लाभ उठाया।

एक स्त्री ने गुरु नानक से प्रार्थना की, 'महाराज, आप हमारे घर पधारकर हमें सेवा का अवसर दें।' उसके बार-बार प्रार्थना करने पर नानक देव उसके घर गए। उस स्त्री ने उनका स्नेहपूर्वक स्वागत किया। उनके पास बैठकर उनके लिए एक कटोरे में हंडिया से दूध डालने लगी। दूध की सारी मलाई कटोरे में गिर गई। यह देख उसके मुंह से निकला, 'अरे-अरे।' फिर दूध में चीनी डालकर उसने कटोरा नानक देव के सामने रख दिया। गुरु नानक यह सब बडे़ ध्यान से देख रहे थे। लेकिन उन्होंने यह जताया कि उन्हें कुछ भी पता नहीं है। वह पास में रखे दूध से अनजान होकर उस स्त्री को उपदेश देने लगे। उन्होंने उसकी जिज्ञासाओं का समाधान किया। उन्हें सुनते हुए भी वह स्त्री देख रही थी कि गुरु नानक दूध पीते हैं या नहीं।

उसने सोचा कि शायद दूध गरम होगा, इसलिए वह पी नहीं रहे हैं, किंतु उपदेश समाप्त होने पर भी जब उन्होंने दूध की ओर ध्यान नहीं दिया, तो वह बोली, 'महाराज दूध पी लीजिए।' तब नानक देव बोले, 'इसमें क्या-क्या मिलाया है?' स्त्री ने सहजता से उत्तर दिया, 'केवल चीनी।' गुरु नानक बोले, 'नहीं इसमें एक चीज और है, इसलिए इसे मैं नहीं पी सकता।' स्त्री ने कहा, 'मैंने तो इसमें और कोई चीज नहीं मिलाई है।' गुरु नानक बोले, 'नहीं, इसमें एक चीज और मिलाई है और वह है अरे-अरे! इसी कारण मैं इसे नहीं पी सकता।' यह सुन स्त्री को बहुत पश्चाताप हुआ। उसने अपने मन में उठे क्षणिक लोभ के लिए उनसे क्षमा मांगी। नानक देव ने स्त्री को क्षमा करते हुए समझाया, 'हमारा हर छोटा-बड़ा आचरण हमारे मन की स्थितियों का बयान करता है। हमारा व्यवहार ही हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है।'

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