Thursday, February 4, 2010

एड्स: बचाव ही इलाज है

दुनिया भर में तेजी से पांव पसारते जा रहे एड्स का इलाज इससे बचाव में ही है। इस स्थिति की भयावहता का ही यह परिणाम है कि एचआईवी पॉजिटिव होने
का मतलब आमतौर पर जिंदगी का अंत मान लिया जाता है, लेकिन यह अधूरा सच है। अगर डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक चला जाए तो एचआईवी पॉजिटिव लोग भी लंबे समय तक सामान्य जीवन जी सकते हैं। एचआईवी और एड्स पर विशेषज्ञों से बात करके पूरी जानकारी दे रहे हैं प्रभात गौड़


क्या है एचआईवी और एड्स ?

एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस) एक ऐसा वायरस है, जिसकी वजह से एड्स होता है। यह वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है। जिस इंसान में इस वायरस की मौजूदगी होती है, उसे हम एचआईवी पॉजिटिव कहते हैं। आमतौर पर लोग एचआईवी पॉजिटिव होने का मतलब ही एड्स समझने लगते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।

दरअसल, होता यह है कि एचआईवी के शरीर में प्रवेश कर जाने के बाद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता (बीमारियों से लड़ने की क्षमता) धीरे-धीरे कम होने लगती है। प्रतिरोधक क्षमता कम होने से शरीर पर तमाम तरह की बीमारियां और इन्फेक्शन पैदा करने वाले वायरस आदि अटैक करने लगते हैं। एचआईवी पॉजिटिव होने के करीब 8 से 10 साल बाद इन तमाम बीमारियों के लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। इस स्थिति को ही एड्स कहा जाता है। वैसे, एचआईवी पॉजिटिव होने के बाद से एड्स होने तक के वक्त को दवाओं की मदद से बढ़ाया जा सकता है और कुछ बीमारियों को ठीक भी किया जा सकता है। जाहिर है, एचआईवी पॉजिटिव होना या एड्स अपने आप में कोई बीमारी नहीं हैं, बल्कि इसकी वजह से बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता कम हो जाती है और तमाम बीमारियां अटैक कर देती हैं।

कैसे काम करता है एड्स का वायरस

वायरस (एचआईवी) की वजह से एड्स होता है। यह वायरस शरीर की जीवित कोशिका (लिविंग सेल) के अंदर रहता है। शरीर से बाहर यह आधे घंटे से ज्यादा रह नहीं सकता। यानी खुले में इस वायरस के जीवित रहने, पनपने या फैलने की कोई आशंका नहीं है।

एचआईवी दो तरह का होता है

एचआईवी-1 और एचआईवी-2।
एचआईवी-1 पूरी दुनिया में पाया जाता है और भारत में भी 80 फीसदी मामले इसी के हैं। एचआईवी-2 खासतौर से अफ्रीका में मिलता है। भारत में भी कुछ लोगों में इसका इन्फेक्शन देखा गया है। कुछ लोगों को दोनों वायरस की वजह से इन्फेक्शन होता है। वैसे, एचआईवी-2 इन्फेक्शन वाले लोग एचआईवी-1 वालों से ज्यादा जीते हैं। मां से बच्चे में एचआईवी-2 ट्रांसफर होने के चांस न के बराबर होते हैं।

शरीर में घुसने के बाद यह वायरस वाइट ब्लड सेल्स पर अटैक करता है और धीरे-धीरे उन्हें मारता रहता है।

इन सेल्स के खत्म होने के बाद इन्फेक्शन और बीमारियों से लड़ने की हमारे शरीर की क्षमता कम होने लगती है। नतीजा यह होता है कि आए दिन शरीर में तमाम तरह के इन्फेक्शन होने लगते हैं। एचआईवी इन्फेक्शन की यह लास्ट स्टेज है और इसी स्टेज को एड्स कहा जाता है।

ऐसे फैल सकता है

एचआईवी पॉजिटिव पुरुष या महिला के साथ अनसेफ (कॉन्डम यूज किए बिना) सेक्स से, चाहे सेक्स होमोसेक्सुअल ही क्यों न हो।

संक्रमित (इन्फेक्टेड) खून चढ़ाने से।

एचआईवी पॉजिटिव महिला से पैदा हुए बच्चे में। बच्चा होने के बाद एचआईवी ग्रस्त मां के दूध पिलाने से भी इन्फेक्शन फैल सकता है।
खून का सैंपल लेने या खून चढ़ाने में डिस्पोजेबल सिरिंज (सिर्फ एक ही बार इस्तेमाल में आने वाली सुई) न यूज करने से या फिर स्टर्लाइज किए बिना निडल और सिरिंज का यूज करने से।

हेयर ड्रेसर (नाई) के यहां बिना स्टर्लाइज्ड (रोगाणु-मुक्त) उस्तरा, पुराना इन्फेक्टेड ब्लेड यूज करने से।

सलून में इन्फेक्टेड व्यक्ति की शेव में यूज किए ब्लेड से। सलून में हमेशा नया ब्लेड यूज हो रहा है, यह इंशुअर करें।

ऐसे नहीं फैलता

चूमने से। लेकिन अगर किसी व्यक्ति को एड्स है और उसके मुंह में कट या मसूड़े में सूजन जैसी समस्या है, तो इस तरह के व्यक्ति को चूमने से भी एड्स फैल सकता है। यानी एड्स का संक्रमण चूमने पर भी फैल सकता है, अगर सावधानी न बरती जाए।

हाथ मिलाना, गले मिलना, एक ही टॉयलेट को यूज करना, एक ही गिलास में पानी पीना, छीकने, खांसने से इन्फेक्शन नहीं फैलता।

एचआईवी शरीर के बाहर ज्यादा देर तक नहीं रह सकता, इसलिए यह खाने और हवा से भी नहीं फैलता।

रक्तदान करने से बशर्ते खून निकालने में डिस्पोजेबल (इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाने वाली) सुई का इस्तेमाल किया गया हो।

मच्छर काटने से।

टैटू बनवाने से, बशर्ते इस्तेमाल किए जा रहे औजार स्टर्लाइज्ड हों।

डॉक्टर या डेंटिस्ट के पास इलाज कराने से। ये लोग भी आमतौर पर स्टरलाइज्ड औजारों का ही इस्तेमाल करते हैं।

इनके जरिए पहुंचता है वायरस

ब्लड

सीमेन (वीर्य)

वैजाइनल फ्लूइड (स्त्रियों के जननांग से निकलने वाला दव)

ब्रेस्ट मिल्क

शरीर का कोई भी दूसरा फ्लूइड, जिसमें ब्लड हो मसलन, बलगम

इनसे भी फैल सकता है एड्स

(इनके संपर्क में अक्सर मेडिकल पेशे से जुड़े लोग ही आते हैं)

दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड के इर्द-गिर्द रहने वाला दव

हड्डी के जोड़ों के आसपास का दव

भ्रूण के आसपास का दव

इन दवों से नहीं होता
हालांकि लार (सलाइवा), यूरिन और आंसुओं में भी इक्का-दुक्का मामलों में एचआईवी पाया गया है, लेकिन अब तक ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है, जिसके आधार पर इन दवों से एचआईवी फैलने की पुष्टि हो।

कौन कराए टेस्ट


टेस्ट कराएं अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि

कभी वह एचआईवी के संपर्क में आ गया होगा।

पिछले 12 महीनों के दौरान अगर एक से ज्यादा पार्टनर के साथ उसके सेक्स संबंध रहे हों।

अपने पार्टनर के सेक्सुअल बिहेवियर को लेकर वह निश्चिंत न हो।

वह पुरुष हो और उसने कभी किसी पुरुष के साथ अनसेफ सेक्स किया हो।

उसे एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज) हो।

वह हेल्थ वर्कर हो, जो ब्लड आदि के सीधे संपर्क में आता हो।

वह प्रेग्नेंट हो।

ये लक्षण हैं तो शक करें

एचआईवी से ग्रस्त इंसान शुरू में बिल्कुल नॉर्मल और सेहतमंद लगता है। कुछ साल बाद ही इसके लक्षण सामने आते हैं। अगर किसी को नीचे दिए गए लक्षण हैं, तो उसे एचआईवी का टेस्ट कराना चाहिए :

एक महीने से ज्यादा समय तक बुखार बने रहना, जिसकी कोई खास वजह भी पता न चले।

बिना किसी वजह के लगातार डायरिया बने रहना।

लगातार सूखी खांसी।

मुंह में सफेद छाले जैसे निशान होना।

बिना किसी वजह के लगातार थकान बने रहना और तेजी से वजन गिरना।

याददाश्त में कमी, डिप्रेशन आदि।

(नोट : ये सभी लक्षण किसी साधारण बीमारी में भी हो सकते हैं। )

एचआईवी के लिए मेडिकल टेस्ट

किसी को एचआईवी इन्फेक्शन है या नहीं, यह पता करने का अकेला तरीका यही है कि उस इंसान का ब्लड टेस्ट किया जाए। लक्षणों के आधार पर शक किया जा सकता है, लेकिन यह पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि एचआईवी है या नहीं, क्योंकि एचआईवी के लक्षण किसी दूसरी बीमारी के लक्षण भी हो सकते हैं। कई मामलों में ऐसा भी होता है कि एचआईवी पॉजिटिव होने के बाद कई साल तक कोई लक्षण सामने नहीं आता।

एचआईवी टेस्ट और काउंसलिंग के लिए सरकार ने पूरे देश में 5 हजार इंटिग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) बनाए हैं। इन सेंटरों पर व्यक्ति की काउंसलिंग और उसके बाद बाजू से खून लेकर जांच की जाती है। यह जांच फ्री होती है और रिपोर्ट आधे घंटे में मिल जाती है। आमतौर पर सभी जिला अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और कुछ कम्यूनिटी हेल्थ सेंटरों पर यह सुविधा उपलब्ध है। यहां पूरी जांच के दौरान व्यक्ति की आइडेंटिटी गुप्त रखी जाती है। पहले रैपिड या स्पॉट टेस्ट होता है, लेकिन इस टेस्ट में कई मामलों में गलत रिपोर्ट भी पाई गई हैं। इसलिए स्पॉट टेस्ट में पॉजिटिव आने के बाद व्यक्ति का एलाइजा टेस्ट किया जाता है। एलाइजा टेस्ट में कन्फर्म होने के बाद व्यक्ति को एचआईवी पॉजिटिव होने की रिपोर्ट दे दी जाती है।

एचआईवी कन्फर्म हो जाने के बाद मरीज को इलाज के लिए एआरटी सेंटर पर भेजा जाता है। पूरे देश में ऐसे करीब 280 एआरटी सेंटर हैं। इन सेंटरों पर इलाज शुरू करने से पहले व्यक्ति का एक और ब्लड टेस्ट किया जाता है, जिसमें उसकी सीडी-4 सेल्स की संख्या का पता लगाया जाता है। अगर यह संख्या 250 से कम है तो व्यक्ति का फौरन इलाज शुरू कर दिया जाता है और अगर उससे ज्यादा है तो डॉक्टर उसे कुछ दिन बाद आने की सलाह दे सकते हैं। इन सेंटरों पर भी काउंसिलर भी होते हैं, जो इलाज के साथ-साथ व्यक्ति की काउंसलिंग भी करते हैं। इलाज फ्री होता है और व्यक्ति की पहचान गुप्त रखी जाती है।

दिल्ली की बात करें तो यहां आरएमएल, एलएनजेपी, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, एम्स, सफदरजंग जैसे सभी बड़े सरकारी अस्पतालों में ट्रीटमेंट सेंटर और टेस्टिंग सेंटर हैं। एलएनजेपी में ओपीडी के रूम नंबर 32 में ट्रीटमेंट सेंटर है और मौलाना आजाद के रूम नंबर 281 में टेस्टिंग सेंटर काम कर रहा है। इसी तरह दूसरे अस्पतालों में भी ये सेंटर्स काम कर रहे हैं।

ट्रीटमेंट सेंटर्स पर आईसीटीसी (सरकारी टेस्टिंग सेंटर) की रिपोर्ट को मान्यता दी जाती है। प्राइवेट लैब में सिर्फ डॉ. लाल और रैनबैक्सी लैब्स की रिपोर्टों को ही मान्यता दी जाती है। इसके अलावा अगर कहीं से कोई एचआईवी टेस्ट रिपोर्ट लेकर ट्रीटमेंट सेंटर जाता है तो उसे दोबारा आईसीटीसी पर टेस्ट कराने को बोला जाता है।

ज्यादातर मामलों में एचआईवी इन्फेक्शन हो जाने के दो हफ्ते के बाद टेस्ट कराने पर ही टेस्ट में इन्फेक्शन आ पाता है, उससे पहले नहीं। कई बार इसमें छह महीने भी लग जाते हैं। ऐसे में अगर किसी को लगता है कि उसका कहीं एचआईवी के प्रति एक्सपोजर हुआ है और फौरन टेस्ट कराता है, तो टेस्ट का रिजल्ट नेगटिव भी आ सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उस व्यक्ति को इन्फेक्शन नहीं हो सकता। ध्यान रखें कि एचआईवी को शरीर में एक्टिव होने में छह महीने तक लग सकते हैं। इसलिए छह महीने बाद एक बार फिर टेस्ट कराना चाहिए। छह महीने बाद भी अगर नेगेटिव आता है तो आप खुद को सेफ मान सकते हैं। शरीर में वायरस की एंट्री से लेकर उसके एक्टिव होने तक के समय को विंडो पीरियड कहा जाता है। इस पीरियड में एचआईवी का टेस्ट से भी पता भले ही न चलता हो, लेकिन जिसके शरीर में वायरस है वह इसे दूसरे को ट्रांसफर जरूर कर सकता है।

एड्स का इलाज

एचआईवी का कोई इलाज नहीं है। एक बार शरीर में आ जाने के बाद वायरस ताउम्र शरीर में रहता है। फिर भी दवाओं की मदद से एचआईवी पॉजिटिव होने से लेकर एड्स होने तक के गैप को बढ़ाया जा सकता है। कोशिश की जाती है कि व्यक्ति ज्यादा लंबे समय तक बीमारियों से बचा रहे।

एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को इलाज के दौरान एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स दिए जाते हैं। एजेडटी, डीडीएल, डीडीसी कुछ कॉमन ड्रग्स हैं, लेकिन इनका असर कुछ ही वक्त के लिए होता है। फिर ये बेहद महंगी भी होती हैं। वैसे, डब्ल्यूएचओ की पॉलिसी यह है कि एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स के बजाय एचआईवी की वजह से होने वाले इन्फेक्शन जैसे टीबी और डायरिया का क्लिनिकल मैनेजमेंट किया जाए।

होम्योपैथी

होम्योपैथी का बेसिक ही यह है कि बीमारियों से नहीं लड़ा जाता, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाया जाता है। होम्योपैथिक विशेषज्ञ एड्स का इलाज करते वक्त शरीर के इम्युनिटी लेवल को बढ़ाने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा एड्स में होने वाले इन्फेक्शन जैसे हर्पीज, डायरिया, बुखार आदि का इलाज किया जाता है। एड्स के मरीजों में मानसिक तनाव दबाव भी अक्सर देखने को मिलता है। होम्योपैथिक इलाज के दौरान इसका भी इलाज किया जाता है। होम्योपैथिक विशेषज्ञों का कहना है कि एड्स के इलाज में उन्हें बहुत अच्छे रिजल्ट मिले हैं।

होम्योपैथी में भी बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं होती। बस उसके बढ़ने की रफ्तार कम हो जाती है।

योग


योगाचार्यों के मुताबिक अगर नीचे दिए गए प्राणायाम नियम से किए जाएं तो बीमारी के बढ़ने की गति को धीमा किया जा सकता है :

कपालभाति प्राणायाम 7 मिनट तक

फिर अनुलोम-विलोम प्राणायाम 10 मिनट तक

और फिर भस्त्रिका 3 मिनट तक करें।

ओम का जाप 11 बार करें।

यह पूरा सेट दिन में दो बार करें।

एड्स के साथ जिंदगी


एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने का मतलब यह नहीं है कि जिंदगी में कुछ नहीं रहा। एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति भी आम लोगों की तरह जिंदगी जी सकते हैं। फिर भी ऐसे लोगों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए :

अपने डॉक्टर से मिलकर एचआईवी इन्फेक्शन से संबंधित अपना पूरा मेडिकल चेकअप कराएं। टीबी और एसटीडी का चेकअप भी जरूर करा लें। डॉक्टर की सलाह के मुताबिक दवाएं लें।

महिलाएं थोड़े-थोड़े दिनों बाद अपनी गाइनिकॉलिजकल जांच कराती रहें।

अपने पार्टनर को इस बारे में बता दें।

दूसरे लोग वायरस से प्रभावित न हों, इसके लिए पूरी तरह से सावधानी बरतें।

अल्कोहल और ड्रग्स का इस्तेमाल बंद कर दें। अच्छी पौष्टिक डाइट लें और टेंशन से दूर रहें।

नजदीकी लोगों से मदद लें और वक्त-वक्त पर प्रफेशनल काउंसलिंग कराते रहें।

ब्लड, प्लाज्मा, सीमेन या कोई भी बॉडी ऑर्गन डोनेट न करें।

प्रेग्नेंट महिलाएं और एड्स


एचआईवी प्रेग्नेंट महिलाओं से उनके बच्चों में पहुंच जाता है, लेकिन ऐसा केवल एक तिहाई मामलों में ही होता है।

हर प्रेग्नेंट महिला को अपना एचआईवी टेस्ट जरूर कराना चाहिए।

कई महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान एचआईवी इन्फेक्शन का पता चलने पर अबॉर्शन का फैसला लेती हैं। यह पूरी तरह से पर्सनल चॉइस है, हालांकि डॉक्टर ऐसी महिलाओं को बच्चा न गिराने की सलाह देते हैं।

ऐसी महिलाओं को डॉक्टर से लगातार सलाह करनी चाहिए। डिलिवरी से पहले मां को और बच्चा होते ही बच्चे को नेवरीपिन नाम की दवा की एक डोज दे दी जाती है। इससे बच्चे के पॉजिटिव होने की आशंका एक तिहाई की भी एक तिहाई रह जाती है।

जन्म लेने के बाद बच्चे का एचआईवी टेस्ट किया जा सकता है, लेकिन इससे यह पता नहीं लग सकता कि बच्चे को इन्फेक्शन है या नहीं, क्योंकि यह टेस्ट एचआईवी एंटीबॉडी टेस्ट होता है और एचआईवी पॉजिटिव मां से पैदा होने वाले हर बच्चे के शरीर में जन्म के वक्त एचआईवी एंटीबॉडी होते ही हैं। इनमें से जो बच्चे एचआईवी पॉजिटिव नहीं होते, वे डेढ़ साल की उम्र तक एचआईवी एंटीबॉडी छोड़ देते हैं। ऐसे में 18 महीने के बाद ही बच्चे का टेस्ट कराया जाए तो अच्छा है। वैसे, पीसीआर टेस्ट से तीन महीने के बच्चे के बारे में भी पता लग जाता है कि वह एचआईवी पॉजिटिव है या नहीं।

बच्चा हो जाने के बाद एचआईवी से ग्रस्त मां को बच्चे को अपना दूध नहीं पिलाना चाहिए।

अगर कोई महिला एचआईवी पॉजिटिव है, तो वह कंसीव (गर्भधारण) कर सकती है। वैसे, कुछ डॉक्टरों का मानना है कि एचआईवी महिला प्रेग्नेंट होने के बाद ज्यादा बीमार हो सकती है।

सेफ ब्लड का मामला

संक्रमित खून भी एचआईवी इन्फेक्शन की एक वजह होती है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि जो ब्लड चढ़ाया जा रहा है, वह संक्रमित न हो। नैको के नैशनल ब्लड सेफ्टी प्रोग्राम के मुताबिक सभी ब्लड बैंकों के लिए ब्लड के हर यूनिट को टेस्ट करना अनिवार्य है। ट्रांसफ्यूजन के लिए इशू करने से पहले इस ब्लड को एचआईवी, सिफलिस, हिपेटाइटिस बी व सी व मलेरिया के लिए टेस्ट किया जाता है।

पिछले दिनों एम्स के एक सर्वे से सामने आया कि एलाइसा टेस्ट (इस टेस्ट के बाद ही ब्लड बैंक ब्लड को चढ़ाने के लिए ओके करते हैं) होने के बावजूद ब्लड में हिपेटाइटिस बी और सी या एचआईवी इन्फेक्शन होने की आशंका रह जाती है, भले ही ऐसा बहुत कम मामलों में होता है। कहने का मतलब यह हुआ कि एलाइजा टेस्ट होने के बाद जो खून आमतौर पर लोगों को चढ़ाया जाता है, वह हिपेटाइटिस और एचआईवी इन्फेक्शन से पूरी तरह सुरक्षित नहीं भी हो सकता है।

इसके बाद सरकार की ओर से देश भर में ऐसी व्यवस्था लागू करने की बात कही गई है, जिसमें ट्रांसफ्यूजन करने से पहले ब्लड का न्यूक्लिक एसिड टेस्ट (एनएटी) भी किया जाएगा। इस टेस्ट के बाद ब्लड को पूरी तरह सुरक्षित माना जा सकता है। फिलहाल एम्स और राम मनोहर लोहिया अस्पताल में इसे शुरू कर दिया गया है। वैसे कुछ प्राइवेट हॉस्पिटल पहले से ही इस टेस्ट को करने के बाद ही मरीज को ब्लड चढ़ाते हैं, जिसके लिए अलग से चार्ज किया जाता है। मरीज की पूरी सेफ्टी के लिए ब्लड चढ़वाने से पहले यह पक्का किया जाए कि उस ब्लड का एनएटी टेस्ट हुआ हो।

जरूरी सवाल-जवाब


दो एचआईवी पॉजिटिव लोग क्या आपस में सेक्स कर सकते हैं?

कॉन्डम के साथ कर सकते हैं। अनसेफ सेक्स न करें, नहीं तो कुछ और भी इन्फेक्शन होने की आशंका है।

कंडोम कई मामलों में फेल भी हो जाते हैं। फिर तो कॉन्डम के साथ सेक्स करने से भी एचआईवी इंफेक्शन हो सकता है?

सही क्वॉलिटी का कॉन्डम सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तब ही कंडोम एचआईवी से बचाव करता है। अगर कॉन्डम फट जाए या गलत तरीके से यूज किया जाए तो इससे इन्फेक्शन होने की आशंका रहती है।

क्या ऐसे एक से ज्यादा लोगों के साथ अनसेफ सेक्स किया जा सकता है, जो सौ फीसदी श्योर हैं कि उन्हें एचआईवी नहीं है?

एचआईवी न होने की सौ फीसदी गारंटी बेहद मुश्किल है इसलिए एक ही पार्टनर के साथ संबंध बनाने चाहिए या दूसरे पार्टनर के साथ सेक्स करने पर कॉन्डम यूज करना चाहिए। वैसे, अगर सौ फीसदी गारंटी मिल जाती है, तो फिर एचआईवी होने की आशंका नहीं है।

क्या फीमेल कॉन्डम एड्स रोकता है?

रोकता है, लेकिन यह उतना विश्वसनीय नहीं है जितना मेल कॉन्डम। अगर फीमेल पार्टनर अपने मेल पार्टनर को कॉन्डम यूज करने के लिए तैयार नहीं कर पा रही है, तो फिर फीमेल कॉन्डम का ऑप्शन अपनाया जाना ठीक है।

क्या एड्स एसटीडी है?

एसटीडी वह होते हैं जो सिर्फ सेक्सुअली कॉन्टैक्ट में आने से फैलते हैं। एड्स सेक्स के जरिए फैलता है, मगर इसके अलावा भी इसका इन्फेक्शन कई और तरीकों से फैल सकता है। इसलिए एड्स को एसटीडी न मानना ही तर्कसंगत है।

अगर एसटीडी है तो क्या एड्स के चांस ज्यादा होते हैं?

अगर एसटीडी है, तो एचआईवी इन्फेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है। एसटीडी अगर सिफलिस, कैंक्रॉइड्स, जेनिटल हपीर्ज या गोनोरिया है, तब यह आशंका बहुत ज्यादा होती है।

अनसेफ एनल सेक्स करने से एड्स हो सकता है?

अनसेफ एनल सेक्स करने से दोनों में किसी भी पार्टनर को एचआईवी हो सकता है, इसलिए कॉन्डम का इस्तेमाल जरूर करें।

अगर एक पार्टनर का टेस्ट एचआईवी नेगेटिव आता है तो क्या दूसरा पार्टनर भी नेगटिव होगा?

कोई जरूरी नहीं है। एक पार्टनर का नेगेटिव होना इस बात की गारंटी नहीं है कि दूसरा पार्टनर भी नेगेटिव होगा।

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