Wednesday, May 5, 2010

संगति का प्रभाव

दो तोते एक साथ बड़े हुए। बड़े होने पर भी दोनों साथ ही रहते थे। एक दिन तेज आंधी आई और वे बिछुड़ गए। एक तोता चोरों की बस्ती में जा पहुंचा और दूसरा एक ऋषि के आश्रम में चला गया।

दोनों वहीं रहने लगे। एक दिन एक राजा शिकार के लिए निकला। वह चोरों की बस्ती के पास एक सरोवर के किनारे आराम करने लगा। इतने में किसी की कर्कश वाणी सुनकर उसकी नींद टूट गई। वह आवाज एक तोते की थी, जो बोल रहा था- अरे यहां कोई है! यह गले में मोतियों और हीरों की माला पहने हुए है। इसकी गर्दन दबाकर माला निकाल लो और लाश को झाड़ी में गाड़ दो। तोते को यह सब बोलते देख राजा डर गया।

वह आगे चल पड़ा और आश्रम में पहुंच गया। ऋषि भिक्षाटन के लिए बाहर गए थे। इतने में ही वहां किसी की कोमल वाणी राजा के कानों में पड़ी। एक तोता कह रहा था- आइए श्रीमान बैठिए। ऋषिवर भिक्षाटन के लिए गए हैं। प्यास लगी हो तो ठंडा पानी पीजिए और यदि भूख लगी हो तो फल खाइए। राजा चकित होकर उसे देखने लगा। इसका रूप-रंग बिल्कुल चोरों की बस्ती में रहने वाले तोते जैसा था। थोड़ी देर बाद ऋषि आए। तब राजा ने उन्हें दोनों तोते की बातें बताई। इस पर ऋषि ने कहा, 'यह तो संगति का असर है। इसके प्रभाव से मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी तक नहीं बच पाते।'
संकलन: लखविन्दर सिंह

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