Wednesday, May 19, 2010

आंखों का तारा

पनघट पर चार औरतें पानी भरने आईं। बातों ही बातों में उन्होंने अपने बेटों की प्रशंसा शुरू कर दी। एक ने कहा, 'मेरा
बेटा बहुत सुरीली बांसुरी बजाता है।' दूसरी ने कहा, 'मेरा बेटा बहुत बड़ा पहलवान है।' तीसरी बोली, 'मेरा पुत्र पढ़ने-लिखने में बहुत तेज है।' चौथी औरत ने कुछ नहीं कहा।

तीनों ने उससे कहा, 'तुम भी कुछ कहो न।' उसने उत्तर दिया, 'मेरे बेटे में कोई विशेष गुण नहीं है।' तभी पहली औरत का बेटा आया। उसकी मां पानी से भरा घड़ा नहीं उठा पा रही थी। बेटे ने एक निगाह अपनी मां पर डाली और बांसुरी बजाता हुआ आगे निकल गया। दूसरी औरत का पहलवान बेटा कुछ दूरी पर खड़ा मुद्गर घुमा रहा था। उसकी मां घड़ा लेकर कुएं से उतर ही रही थी कि उसका पैर फिसल गया। पहलवान ने एक बार अपनी मां की तरफ देखा और फिर अपने काम में लग गया।

तीसरी औरत का बेटा किताब पढ़ता हुआ जा रहा था। उसकी मां ने कहा, 'मैं दोनों हाथों से घड़ा पकडे़ हुए हूं। रस्सी मेरे कंधे पर डाल दे।' बेटे ने किताब से निगाह हटाए बिना चलते-चलते कहा, 'पढ़ने दो मुझे।' इसके बाद चौथी औरत का बेटा आया। उसने अपनी मां के सिर से घड़ा उतारकर अपने सिर पर रख लिया और घर की ओर चल पड़ा। एक बुढि़या सब देख-सुन रही थी। वह बोली, 'मुझे तो एक ही आंखों का तारा दिखाई पड़ रहा है- वही जो अपने सिर पर घड़ा लिए जा रहा है।'

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