राजदरबार में एक आदमी आया। उसने राजा से प्रार्थना की, 'महाराज, मैं बहुत गरीब हूं, कृपया मुझे सोने के कुछ सिक्के दे दीजिए।' राजा ने पूछा,'तुम कोई काम क्यों नहीं करते?' वह बोला, 'मुझे कोई काम नहीं देता। लोग मुझे आलसी कहते हैं।'
राजा ने कहा, 'ठीक है, खजाने से तुम जितना सोना ले जाना चाहो, ले जाओ। परंतु ध्यान रखना, सूरज ढलने के बाद खजाना बंद हो जाता है, इसलिए समय पर आ जाना।' वह आदमी बहुत खुश हुआ। अगले दिन नाश्ता कर वह खजाने की ओर चल दिया। रास्ते में उसे एक छायादार पेड़ मिला। घनी छाया देखकर वह वहीं सो गया। दोपहर में जब नींद खुली तो उसने सोचा, शायद मैं ज्यादा देर सो गया। खैर कोई बात नहीं, शाम होने में अभी काफी समय बाकी है। वह उठकर आगे बढ़ा। रास्ते में मेला लगा हुआ था। उसने सोचा, क्यों न कुछ देर मेला देख लिया जाए, फिर खजांची के पास चला जाऊंगा।
काफी देर तक वह मेले का आनंद लेता रहा। जब उसने देखा कि अब सूरज डूबने ही वाला है तो उसे राजा की चेतावनी याद आई। वह भागकर खजाने के पास पहुंचा लेकिन तब तक सूरज डूब चुका था। सैनिकों ने उसे अंदर जाने से रोक दिया। उन्होंने कहा, 'तुमने देर करके अमीर बनने का एक बढ़िया मौका खो दिया।' वह अपने घर लौट गया। उसे बेहद पछतावा हो रहा था। उसने तय किया कि जीवन में वह कभी आलस्य नहीं करेगा।
संकलन : रमेश चंद्र
प्रेरणास्पद कहानी है।
ReplyDeleteThank you & keep visiting....
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