Saturday, April 17, 2010

दूसरों के लिए

एक बादशाह बड़ा ही न्यायप्रिय था। वह हर समय अपनी प्रजा की भलाई के लिए चिंतित रहता था। एक दिन वह शिकार करने जा रहा था। रास्ते में उसने देखा कि एक वृद्ध छोटा सा पौधा लगा रहा है। बादशाह उत्सुकतावश उसके पास गया और बोला ,'यह आप किस चीज का पौधा लगा रहे हैं?' वृद्ध ने धीमे स्वर में कहा, 'अखरोट का।' बादशाह ने हिसाब लगाया कि उसके बड़े होने और उस पर फल आने में कितना समय लगेगा। हिसाब लगाकर उसने आश्चर्य से वृद्ध की ओर देखा। फिर बोला, 'सुनो भाई, इस पौधे के बड़े होने और उस पर फल आने में कई साल लग जाएंगे, तब तक तो शायद तुम रहोगे भी नहीं?' वृद्ध ने बादशाह की ओर देखा।

वह बादशाह की दुविधा को भांप गया। उसने बादशाह से कहा, 'आप सोच रहे होंगे कि मैं पागलपन का काम कर रहा हूं। जिस चीज से आदमी को फायदा नहीं पहुंचता, उस पर कौन मेहनत करता है, लेकिन यह भी सोचिए कि इस बूढ़े ने दूसरों की मेहनत का कितना लाभ उठाया है। दूसरों के लगाए पेड़ों के कितने फल खाएं हैं। क्या उस कर्ज को उतारने के लिए मुझे कुछ नहीं करना चाहिए? क्या मुझे इस भावना से पेड़ नहीं लगाने चाहिए कि उसके फल दूसरे लोग खा सकें? जो केवल अपने लाभ के लिए काम करता है, वह स्वार्थी होता है।' यह सुनकर बादशाह ने निश्चय किया कि वह प्रतिदिन एक पौधा लगाएगा।

2 comments:

  1. ' इस बूढ़े ने दूसरों की मेहनत का कितना लाभ उठाया है। दूसरों के लगाए पेड़ों के कितने फल खाएं हैं। क्या उस कर्ज को उतारने के लिए मुझे कुछ नहीं करना चाहिए? क्या मुझे इस भावना से पेड़ नहीं लगाने चाहिए कि उसके फल दूसरे लोग खा सकें?;

    - हिन्दू दर्शन यही कहता है.

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