बगदाद के बादशाह हजरत उमर बिन अजीज के पास एक बेशकीमती अंगूठी थी। बादशाह को उससे बड़ा लगाव था। कहते हैं कि उसी अंगूठी के कारण ही अजीज की गिनती दुनिया के महान बादशाहों में होती थी। एक बार बगदाद में भयंकर सूखा पड़ा। चारों तरफ त्राहि त्राहि मच गई।
बादशाह ने शाही खजाना खोल कर जनता की तकलीफ दूर करने की कोशिश की पर धीरे - धीरे वह भी खाली हो गया। आखिरकार बादशाह ने राज्य के सभी प्रमुख लोगों की बैठक बुलाई , लेकिन कोई हल नहीं निकला। एक दिन दरबार में बादशाह ने अपनी अंगूठी निकाल कर खजांची को देते हुए कहा , ' इसे बेच दो। मेरे पास अब सूखा राहत के लिए कुछ नहीं बचा। '
दरबारियों में हलचल हुई। सब जानते थे कि बादशाह को अंगूठी बहुत प्यारी है। एक दरबारी ने कहा , ' थोड़ा इंतजार कर लीजिए। बारिश होने में अब कुछ ही दिन बाकी है। सब ठीक हो जाएगा। मगर ऐसी अंगूठी फिर नहीं मिलेगी। ' बादशाह ने कहा , ' ठीक कहते हो। मगर मैं बारिश के भरोसे लोगों को नहीं छोड़ सकता।
मुझसे जितना होगा मैं उनके लिए करूंगा। आम आदमी दुख सहता रहे और मैं अंगूठी का मोह करूं यह ठीक नहीं है। एक बादशाह का फर्ज है कि वह तकलीफ में लोगों का साथ दे। ' दरबारियों ने मौन होकर बादशाह के निर्णय का स्वागत किया और बादशाह का अनुकरण करते हुए उन्होंने भी अपने कीमती सामान बेच कर उसके पैसे सूखा राहत कोष में जमा करा दिए।
संकलन : सुरेश सिंह
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