किसी गांव में एक कथावाचक अपना खर्च जजमानी से चलाते थे। धीरे-धीरे जब उनकी आमदनी कम होने लगी तो वह गांव छोड़ कर शहर चले गए। वह अपने साथ लोहे के बक्से में कुछ किताबें और कुछ पुराने कपड़े ले गए। शहर में उन्हें एक सेठ के यहां मुनीम की नौकरी मिल गई।
सेठ जी के यहां दो मुनीम पहले से काम करते थे। हेड मुनीम बनते ही पंडित जी ने कड़ाई की और पहले के मुनीमों और अन्य नौकरों की ऊपरी कमाई बंद करवा दी। कमाई बंद होने से वहां के नौकर पंडित जी से नाराज हो गए और किसी तरह उन्हें हटाने की योजना बनाने लगे।
पंडित जी की आदत थी कि वह प्रतिदिन घर पहुंचते ही अंदर से किवाड़ बंद कर लेते थे और एक घंटे तक किसी को भी अंदर नहीं आने देते थे। एक दिन पुराने नौकरों ने सेठ से कहा, 'आप जिस मुनीम को ईमानदार समझते हैं वह महा चोर है। वह घर जाकर नोटों की गड्डी गिन कर रखता है। आप चाहे तो स्वयं देख सकते हैं।'
पहले तो सेठ जी को विश्वास नहीं हुआ लेकिन रोज-रोज की शिकायत से परेशान होकर वह उन नौकरों के साथ पंडित जी के घर गए। पंडित जी ने अंदर से किवाड़ बंद कर रखा था। सेठ जी ने दरवाजा खोलने का अनुरोध किया तो पंडित जी ने उन्हें प्रतीक्षा करने को कहा।
कुछ देर बाद जब पंडित जी ने दरवाजा खोला तो सेठ जी ने देखा कि सामने कुछ पुरानी किताबें और पुराने कपड़े पड़े थे। एक तरफ वही पुराना ट्रंक रखा हुआ था जिसमें थोड़े-बहुत पैसे थे। पंडित जी ने कहा, 'मैं प्रतिदिन शाम को अपनी सभी चीजों को देख कर अपने अतीत को याद कर लेता हूं और प्रभु से प्रार्थना करता हूं कि मुझमें कभी लालच पैदा मत करना। मैं नहीं चाहता कि कोई उस समय विघ्न डाले इसलिए मैं किवाड़ नहीं खोलता। जो लोग अपने अतीत को भूल जाते हैं वह गलत रास्ता पकड़ लेते हैं।'
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