Wednesday, March 10, 2010

Ubuntu

इस पृष्ठ का उद्देश्य है आपको उबंटू (या उबंतू) ऑपरेटिंग सिस्टम और उससे जुडी ओपन सोर्स एवं फ्री सोफ्टवेयर विचारधारा के बारे में बताना. इसे कीर थॉमस की पुस्तक पौकेट गाइड एंड रेफेरेंस टु उबंटू की प्रस्तावना से आवश्यक हेरफेर के साथ अनूदित किया गया है. उक्त पुस्तक को आप यहाँ से मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.

मैं वर्ष 2000 से कम्पयूटर का इस्तेमाल कर रहा हूँ. मैंने अपना पहला कंप्यूटर 2001 में लिया था. उस समय माइक्रोसॉफ्ट विन्डोज़ 98 ऑपरेटिंग सिस्टम प्रचलन में था और विन्डोज़ एक्सपी भी कुछ समय बाद आ गया. निस्संदेह ये ऑपरेटिंग सिस्टम शानदार हैं और इन्होने कंप्यूटिंग को बहुत आसान बना दिया है. मेरा पहला कंप्यूटर लगभग रु.30,000 से ज्यादा का था और उसमें पड़े सभी सोफ्टवेयर और ऑपरेटिंग सिस्टम पायरेटेड थे. यदि मैंने उनके दाम चुकाए होते तो मुझे अपना कंप्यूटर रु.50,000 से ज्यादा का पड़ता. उनदिनों मैं लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में सुनता था लेकिन समझ नहीं पाता था कि वह क्या है. जब मैंने कम्प्यूटर के जानकारों से उसके बारे में पूछा तो मुझे बताया गया की वह विन्डोज़ से बहुत अलग और मुश्किल होता है लेकिन फ्री होता है – बात ख़तम. विन्डोज़ भी तो 90% भारतियों के लिए लगभग फ्री ही होता है!

समय बीतने के साथ-साथ पढ़ने-समझने का दायरा बढा और मैंने विन्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम के विकल्पों के बारे में जानकारी प्राप्त की और उन्हें उपयोग करके भी देखा. आज मैं निस्संदेह कह सकता हूँ कि न केवल ये ऑपरेटिंग सिस्टम बल्कि इनको जन्म देने वाले विचार भी अत्यंत महान हैं. ऐसे ही एक ऑपरेटिंग सिस्टम उबंतू के बारे में मैं आपको संक्षेप में बताने जा रहा हूँ.

हो सकता है कि आपको पता नहीं हो कि उबंतू किस चिड़िया का नाम है और मैं किस बारे में बात कर रहा हूँ या ओपन सोर्स एवं फ्री सोफ्टवेयर विचारधारा व नीतियां क्या हैं. ऐसा है तो शायद आप केवल कौतूहल या असावधानीवश यहाँ पर आ गए हैं. यदि आ ही गए हैं तो थोडा सा पढ़ भी लें ताकि आपको कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानकारी मिल सके.

उबंतू क्या है?

उबंतू लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम का एक वर्ज़न है. किसी भी कंप्यूटर में ऑपरेटिंग सिस्टम सबसे महत्वपूर्ण सोफ्टवेयर होता है जो ‘कंप्यूटर को चलाता है’. माइक्रोसॉफ्ट विन्डोज़ विश्व का सबसे लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम है और इसने बिल गेट्स को व्यापारजगत की बुलंदी पर पिछले दो दशकों से बिठा रखा है. लिनक्स भी एक ऑपरेटिंग सिस्टम है लेकिन इसके बनने की कहानी कुछ अलग है.

जीएनयू या ग्नू (GNU)

stallmanयह इस कहानी का सबसे महत्वपूर्ण भाग है. वर्ष 1984 में रिचर्ड स्टालमैन नामक एक विलक्षण प्रतिभावान कंप्यूटर वैज्ञानिक ने उस समय के प्रतिष्ठित ऑपरेटिंग सिस्टम यूनिक्स का क्लोन बनाने का विचार किया. उस समय विश्व के महत्वपूर्ण शैक्षणिक और अकादमिक हलकों में बहुधा यूनिक्स का ही उपयोग होता था. स्टालमैन ने यह देखा की यूनिक्स एकाधिकारी होता जा रहा था और इसके सोर्स कोड (प्रोग्रामरों द्वारा की गई लिस्टिंग) को साझा करने की अनुमति नहीं थी जबकि वर्ष 1969 में यूनिक्स के निर्माण और प्रचलन के प्रारंभ होने के बाद के कुछ वर्षों तक इसके सोर्स कोड को प्रोग्रामर साझेदारी से बदलते और परिवर्धित करते आये थे.

स्टालमैन के लिए यह सब असह्य था क्योंकि उनका यह मानना था कि सोफ्टवेयरों की साझेदारी से उनकी उन्नति होती है और ज्ञान बढ़ता है. उन्होंने तय किया कि वे अपना स्वयं का यूनिक्स बनायेंगे जो हमेशा मुफ्त में ही उपलब्ध होगा. उन्होंने इससे जुड़े वैधानिक और नीतिगत मुद्दों पर विचार करके एक फ्री सोफ्टवेयर नीति तैयार की. इसके अनुसार फ्री सोफ्टवेयर के उपयोगकर्ताओं को यह स्वतंत्रता है कि वे बिना किसी निषेध के उस प्रोग्राम को एक दूसरे के साथ बाँटें. यह नीति तकनीकी स्तर पर फ्री सोफ्टवेयर उसके उपयोगकर्ताओं को यह अधिकार भी देती है कि वे उस प्रोग्राम के सोर्स कोड में परिवर्तन करके उसे बेहतर बना सकते हैं या उससे किसी अन्य प्रोग्राम की रचना भी कर सकते हैं. इसकी एकमात्र शर्त यह है कि इस प्रकार बने नए प्रोग्राम भी फ्री सोफ्टवेयर के रूप में साझे किये जाएँ ताकि सभी उनका लाभ उठा सकें.

सभी फ्री सोफ्टवेयरों के लाइसेंस में फ्री सोफ्टवेयर के आदर्श निहित होते हैं. इन्हें जीएनयू (या ग्नू) पब्लिक लाइसेंस कहते हैं. ये माइक्रोसॉफ्ट के यूला (EULA – End User License Agreement) जैसा है जो विन्डोज़ के हर प्रोग्राम के इंस्टालेशन से पहले हमारे सामने आता है. जहाँ विन्डोज़ का लाइसेंस अग्रीमेंट सोफ्टवेयर को  किसी भी परिस्तिथि में बांटने या कॉपी करने की इजाज़त नहीं देता, जीएनयू पब्लिक लाइसेंस इसका ठीक विपरीत कहता है – अर्थात, आप ओपन सोर्स या फ्री सोफ्टवेयर को जिस भी रूप में चाहें बाँट सकते हैं या कॉपी कर सकते हैं.

स्टालमैन ने अपने यूनिक्स के वर्ज़न को यूनिक्स ग्नू कहा. ये अंग्रेजी में एक रिकर्सिव ऐक्रोनाइम है – GNU is not Unix.

लिनक्स केर्नल (kernel) की कहानी

391px-Linus_Torvaldsग्नू एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट बन गया जिसमें बहुत सारे लोगों ने सहभागिता की. यद्यपि यह बहुत अच्छा प्रोग्राम था लेकिन इसमें एक आधारभूत कमी थी. इसका कोई केर्नल नहीं था. केर्नल वह प्रोग्राम है जो ऑपरेटिंग सिस्टम के ह्रदय में रहकर कुछ मूलभूत कार्यों जैसे हार्डवेयर और सोफ्टवेयर के तालमेल को स्थापित करता है.

केर्नल की समस्या का हल फिनलैंड के एक नवयुवक लिनस टोरवाल्ड ने अनायास ही ढूँढ लिया. 1991 में उसने ग्नू के केर्नल को बनाने के लिए एक निजी प्रोजेक्ट शुरू किया. उसका निर्माण हो जाने पर उसने उसे इन्टरनेट पर लोड कर दिया. लोड करने के बाद नाम देते समय असावधानीवश इसका नाम लिनक्स पड़ गया – लिनस और यूनिक्स का हाइब्रिड रूप. लिनस टोरवाल्ड ने अपने कर्नेल को भी फ्री सोफ्टवेयर के रूप में जारी किया और उसमें सुधार के लिए लोगों से मदद मांगी. दुनिया भर के हजारों प्रतिभाशाली प्रोग्रामर और कंप्यूटर वैज्ञानिक इसमें जुट गए. साल दर साल बीतने के साथ-साथ प्रोजेक्ट विशाल और विविधतापूर्ण होता गया. आज लिनक्स केर्नल को आईबीएम जैसे बड़े-बड़े संस्थानों से भी स्पोंसरशिप मिलती है. लिनस टोरवाल्ड अभी भी लिनक्स के विस्तार से जुड़े कार्यकारों पर नज़र रखते हैं. विनोदप्रिय लिनस स्वयं को ‘नम्र तानाशाह’ कहते हैं.

केर्नल किसी भी ऑपरेटिंग सिस्टम का इतना महत्वपूर्ण भाग है कि लोगों ने ग्नू और लिनक्स को केवल लिनक्स ही कहना शुरू कर दिया. स्टालमैन को इसपर गंभीर ऐतराज़ है. उनके अनुसार ग्नू/लिनक्स (GNU/Linux) नाम का उपयोग किया जाना चाहिए लेकिन अब तो बहुत देर हो चुकी है. बहुत कम लोग ही इसे ग्नू/लिनक्स कहते हैं. लिनक्स नाम ही सबकी जुबान पर चढ़ गया है. ऑपरेटिंग सिस्टमों को ग्नू/लिनक्स कहा जाय या लिनक्स, यह अभी भी विवाद का विषय है.

लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम में ग्नू और लिनक्स केर्नल के अलावा अन्य स्रोतों से लिए गए सोफ्टवेयर भी होते हैं. साधारणतः लिनक्स में सभी सोफ्टवेयर फ्री सोफ्टवेयर होते हैं पर यह ज़रूरी नहीं है कि उनका ग्नू अथवा रिचर्ड स्टालमैन से कोई वाणिज्यिक अथवा वैचारिक संबंध हो. वास्तव में, ग्नू नहीं बल्कि फ्री सोफ्टवेयर की अवधारणा स्टालमैन द्वारा मानव जाति को दिया गया अभिनव उपहार है. आजकल स्टालमैन विश्व भर में घूमकर फ्री सोफ्टवेयर तथा ग्नू के प्रति जाग्रति उत्पन्न करने में जुटे हैं.

कभी-कभी ओपन सोर्स शब्द का प्रयोग फ्री सोफ्टवेयर के लिए भी किया जाता है. इनमें कुछ बारीक अंतर भी हैं जिन्हें आप ओपन सोर्स की वेबसाईट पर पढ़ सकते हैं.

प्रबुद्ध ब्लौगर उन्मुक्त जी ने भी लिनक्स की कहानी के शीर्षक से एक बेहतरीन पोस्ट लिखी है जिसमें उससे जुड़े अदालती विवादों पर भी रौशनी डाली गई है.

लिनक्स डिस्ट्रीब्यूशंस या डिस्ट्रोस

लिनक्स का कोई एक वर्ज़न नहीं है. लोगों ने अपनी आवश्यकता के अनुरूप इसके सैंकडों वर्ज़न बनाये हैं. इन्हें लिनक्स डिस्ट्रोस कहा जाता है. कुछ महत्वपूर्ण डिस्ट्रोस हैं रेडहैट और स्यूज़ और आयेदिन नए-नए डिस्ट्रोस आते रहते हैं. दुनिया की लगभग हर महत्वपूर्ण भाषा (भोजपुरी और छत्तीसगढ़ी भी) और संस्कृतियों के अनुरूप जैसे इस्लामी लिनक्स और शैतानी लिनक्स भी बनाये जा चुके हैं.

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इस विविधता का कारण यह है कि ओपन सोर्स या फ्री सोफ्टवेयर के अर्न्तगत मिली स्वंतंत्रता के कारण कोई भी सोर्स कोड को प्राप्त करके अपना खुद का लिनक्स बना सकता है. कुछ कंपनियों ने भी अपने लिनक्स बनाये हैं. उबंटू ऐसा लिनक्स है जिसे कंपनी और समुदाय दोनों के सहयोग से बनाया गया है. इसे कैनोनिकल नामक कंपनी ने बनाया है जिसकी स्थापना मार्क शटलवर्थ ने 2004 में की थी, लेकिन उबंटू को अनगिनत लिनक्स प्रेमियों के बड़े समुदाय का भी सहयोग मिला है. उबंटू एक अन्य प्रसिद्द डिस्ट्रो डेबियन पर आधारित है जो समुदाय द्वारा बनाया गया डिस्ट्रो है.

उबंटू में ख़ास क्या है?

निम्नलिखित तीन विशेषताएँ उबंटू को सब लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम्स से अलग करती हैं:-

1. यह डेस्कटॉप कंप्यूटर उपयोग करने वालों के लिए है.
2. उबंटू का स्वयं का दर्शन और समुदाय है.
3. यह उपयोग में बेहद आसान है.

हांलाकि उबंटू सभी प्रकार के कम्प्यूटरों के लिए बनाया गया है (जैसे पीसी व सर्वर) लेकिन मूल रूप से यह डेस्कटॉप कंप्यूटर उपयोग करनेवालों के लिए अति उपयोगी है. लिनक्स के अधिकांश डिस्ट्रोस डेस्कटॉप व सर्वर दोनों को चला सकते हैं. सर्वर वे शक्तिशाली कंप्यूटर हैं जो इन्टरनेट को चलायमान रखते हैं. उबंटू को प्रोन्नत करनेवाले प्रोग्रामर इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि इसके साधारण उपयोगकर्ताओं को डेस्कटॉप कंप्यूटर में काम करते समय किसी प्रकार की असुविधा न हो.

अब तक आप यह समझ चुके होंगे कि लिनक्स विचारधारा पर आधारित ऑपरेटिंग सिस्टम है. उबंटू भी यही है.

उबंटू का अफ्रीका से संबध: उबंटू जुलू भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है “दूसरों के प्रति मानवता”. बीसवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में यह शब्द साउथ अफ्रीका में बहुत पॉपुलर हो गया और इसे मार्क शटलवर्थ ने अपने लिनक्स प्रोजेक्ट के लिए 2004 में चुना. मार्क ने इस विचारधारा और फ्री सॉफ्टवेर के विषय पर अपना दार्शनिक व्यक्तव्य (स्टेटमेंट) भी बनाया.

कम शब्दों में कहें तो, उबंटू प्रोजेक्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ प्रचुर मात्रा में उपयोगी सॉफ्टवेर भी देना चाहिए और सभी के लिए उबंटू का उपयोग, उसमें साझेदारी, और रूपांतरण/परिवर्तन करना संभव होना चाहिए.

लिनक्स के अधिकांश वर्ज़नों की तरह उबंटू भी फ्री में मिलता है. सामान्यतः 18 महीनों की अवधि तक इसके अपडेट भी फ्री मिलते हैं. इस बीच उबंटू के नए वर्ज़न आ चुके होते हैं. इसके बारे में आगे विस्तार से जानकारी दी जायेगी.

उबंटू विचारधारा के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करें:
www.ubuntu.com/community/ubuntustory/philosophy
फ्री सॉफ्टवेर फौंडेशन के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करें:
www.gnu.org/philosophy/free‐sw.html

शेष जल्द ही पोस्ट किया जायेगा.
मेरा सुन्दर उबंटू डेस्कटॉप

my beautiful ubantu desktop

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