इस क्षण में जीना
जैसे- जैसे हम ध्यान में गहरे उतरते हैं, समय विलीन हो जाता है। जब ध्यान अपनी परिपूर्णता में खिलता है, समय खोजने पर भी नहीं मिलता। यह युगपत होता है- जब मन खो जाता है, समय भी खो जाता है। इसलिए सदियों से रहस्यवादी संत कहते आए हैं कि मन और समय एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मन समय के बिना नहीं हो सकता और समय मन के बिना नहीं हो सकता। मन के बिना रहने के लिए समय एक उपाय है।
इसलिए सभी बुद्ध पुरुषों ने जोर दिया है, 'इस क्षण में जीओ।'
इस क्षण में जीना ही ध्यान है; अभी और यहीं होना ही ध्यान है। जो केवल अभी और इस क्षण में मेरे साथ हैं, वे ध्यान में हैं। यह ध्यान है- दूर से आती कोयल की पुकार और हवाई जहाज का गुजरना, कौओं और पक्षियों की आवाज- और सब शांत है और मन में कोई हलन-चलन नहीं है। न आप अतीत के बारे में सोच रहे हैं, न भविष्य के बारे में सोच रहे हैं। समय रुक गया है। संसार रुक गया है।
संसार का रुक जाना ही ध्यान की पूरी कला है। और, इस क्षण में जीना ही शाश्वतता में जीना है। बिना किसी धारणा के बिना किसी मन के इस क्षण का स्वाद लेना ही अमरत्व का स्वाद लेना है।
नटराज-नृत्य एक संपूर्ण ध्यान है। यह पैंसठ मिनट का है और इसके तीन चरण हैं।
प्रथम चरण : चालीस मिनट
आंखें बंद करके इस प्रकार नाचें जैसे आविष्ट हो गया हो। नृत्य को अपने ऊपर छाने दें कि नृत्य ही नृत्य रह जाए। शरीर जैसे भी नृत्य करे, उसे करने दें। न तो उसे नियंत्रित करें और न ही जो हो रहा है, उसके साक्षी बनें। बस नृत्य में पूरी तरह डूब जाएं।
दूसरा चरण : बीस मिनट
आंखें बंद रखे हुए ही लेट जाएं। शांत और निश्चल रहें।
तीसरा चरण : पांच मिनट
उत्सव भाव से नाचें, आनंदित हों और अहोभाव व्यक्त करें।
http://www.youtube.com/watch?v=L4thsq2m0ic
ReplyDeletemust see this link otherwise you miss very useful information about meditation.