Wednesday, March 3, 2010

प्रात:कालीन ध्यान विधियां

एक-सूर्योदय की प्रतीक्षा में

सूर्योदय से बस पंद्रह मिनट पहले, जब आकाश में हलका सा प्रकाश फैलने लगे, तब सिर्फ देखें और प्रतीक्षा करें। जैसे कि कोई अपने प्रियतम की प्रतीक्षा करता है- व्यग्रता से, गहरी प्रतीक्षा में, आशा से भरे हुए और उत्तेजित- लेकिन फिर भी शांत। और, बस सूरज को उगने दें और देखते रहें। अपलक देखने की कोई जरूरत नहीं, आप अपनी पलकें झपका सकते हैं। बस सूरज को उगते देखते रहें ओर ऐसा भाव करें कि साथ ही कोई चीज भीतर भी उग रही है। जब सूरज क्षितिज पर आए, तब भाव करें कि वह प्रकाश-बिंदु नाभि के पास ही है। वहां सूरज क्षितिज पर ऊपर आ रहा है और यहां, नाभि के भीतर, वह ऊपर आ रहा है, धीरे-धीरे ऊपर आ रहा है। वहां सूर्योदय हो रहा है और यहां प्रकाश का एक अंतर्बिदु उदय हो रहा है। बस दस मिनट काफी है। फिर अपनी आंखें बंद कर लें। जब पहले आप सूरज को खुली आंखों से देखते हैं, तो उसका एक प्रतिचित्र, 'निगेटिव' बनता है, इसलिए जब आप अपनी आंखें बंद कर लेते हैं, तो आप सूरज को भीतर जगमगाते हुए देख सकते हैं। और यह आपको बहुत ही आश्चर्यजनक रूप से बदल देगा।

दो- उगते सूरज की प्रशंसा में

सूर्योदय से पहले पांच बजे उठ जाएं और आधे घंटे तक बस गाएं, गुनगुनाएं, आहें भरें, कराहें। इन आवाजों का कोई अर्थ होना जरूरी नहीं है- ये अस्ति्वगत होनी चाहिए, अर्थपूर्ण नहीं। इनका आनंद लें, इतना काफी है- यही इनका अर्थ है। आनंद से झूमें। इसे उगते सूरज की स्तुति बनने दें और तभी रुकें जब सूरज उदय हो जाए।
इससे दिन भर भीतर एक लय बनी रहंगी। सुबह से ही आप एक लयबद्धता अनुभव करेंगे और आप देखेंगे कि पूरे दिन का गुणधर्म ही बदल गया है- आप ज्यादा प्रेमपूर्ण, ज्यादा करुणापूर्ण, ज्यादा जिम्मेवार, ज्यादा मैत्रीपूर्ण हो गए हैं; और आप अब कम हिंसक, कम क्रोधी, कम महत्वाकांक्षी, कम अहंकारी हो गए हैं।

No comments:

Post a Comment