एक सेठ के यहां कई नौकर काम करते थे। उनमें शंभु नामक एक रसोइया भी था। वह सेठ जी के परिवार और सभी नौकरों
का भोजन एक साथ बनाता था। एक दिन सेठ जी जब खाना खाने लगे तो उन्हें सब्जी मीठी लगी। वह समझ गए कि शंभु ने भूल से सब्जी में नमक की जगह चीनी डाल दी है। मगर सेठ जी ने उसके सामने बड़े चाव से सारी सब्जी खाई। शंभू को कुछ पता नहीं चला। खाने के बाद सेठ जी ने शंभु से कहा, 'शायद तुम परेशान हो। क्या बात है?'
शंभू ने कहा, 'पत्नी कई दिनों से बीमार है। यहां से जाने के बाद उसकी देखभाल करने में ही सारी रात बीत जाती है।' सेठ ने उसे कुछ पैसे देते हुए कहा, 'तुम अभी घर चले जाओ और पत्नी जब पूरी तरह स्वस्थ हो जाए तभी आना। और पैसे की जरूरत पड़े तो आकर ले जाना।' शंभु चला गया। उसके जाने के बाद सेठानी ने कहा, 'आप ने उसे जाने क्यों दिया। अभी तो और लोगों ने खाना तक नहीं खाया है। सारा काम पड़ा है।' सेठ जी बोले, 'उसके मन में अपने से ज्यादा हमारी चिंता है तभी उसने एक दिन छुट्टी नहीं की। आज उसने सब्जी में नमक की जगह चीनी डाल दी है। मैं उसके सामने सब्जी खा गया ताकि उसे कुछ पता न चले।
है तो बहुत छोटी बात, लेकिन यदि यह सब्जी दूसरे नौकर खाएंगे तो शंभु के आने पर सब उसका मजाक उड़ाएंगे। वह लज्जित होगा। इसलिए तुम इसे जानवरों को खिला दो और दूसरी सब्जी बना कर सभी को खिलाओ।' पत्नी बोली, 'आप भी कमाल करते हैं। हमारे पास संपत्ति है, सम्मान है फिर भी नौकरों को लेकर इतनी चिंता क्यों?' सेठ जी ने कहा, 'आज हमारे पास जो कुछ भी है, वह इन्हीं लोगों की मेहनत और ईमानदारी का फल है। मैंने अभी तक जो रिश्ते कमाए हैं उन्हें खोना नहीं चाहता। असली धन तो यही है।'
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