इससे पहले कि व्यक्ति ध्यान करे, उसे सीखना चाहिए अपनी देह के साथ कैसे प्रेम किया जाता है, कैसे उसकी परवाह की जाती है। अब तक आध्यात्मिकता का मतलब यही था कि देह तो दुश्मन है। यह सीख रगों में गहरे घुस कर बैठ गई है।
ओशो ने देह की ओर रुख मोड दिया। वे कहते हैं कि अवचेतन में कहीं गहरे बैठ चुके इस सबक ने लगभग सभी को देह के खिलाफ कर दिया है। देह को प्रेम करने के विचार तक से हमें शर्मिंदगी होती है, अजीब लगता है। लेकिन, अगर आप देह से प्रेम करना शुरू करें तो उससे इतना मजा आएगा, इतना सुख मिलेगा कि हो सकता है कि अस्तित्व के नये आयाम खुल जाएं।
अपने सुख को दूसरे पर निर्भर मत रहने दें। पेड़ के नीचे खाली बैठे हैं तो भी प्रसन्न रहेंे। यह जरा कठिन लगता है कि उस समय भी प्रसन्न कैसे रहा जाए जब प्रसन्न होने का कोई कारण न हो। आम तौर से हम किसी कारण से ही प्रसन्न होते हैं। जब कोई दोस्त आता है तो प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन बिना किसी कारण के होनेवाली प्रसन्नता में मस्ती होती है। प्रसन्नता का कोई दृश्य कारण नहीं होता, यह तो अपने भीतर से फूटने वाला झरना है।
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